2122 1122 22
उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता
दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता
दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता
मुस्कुराता रहा जो बारिश में
दीन में मस्त कलन्दर होता
उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता
दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता
दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता
मुस्कुराता रहा जो बारिश में
दीन में मस्त कलन्दर होता
सर्द मौसम या तपन सूरज की
झेलता मैं तो सिकन्दर होता
-ऋता
झेलता मैं तो सिकन्दर होता
-ऋता