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रविवार, 1 जुलाई 2018

ग़ज़ल

2122 1122 22

उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता

दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता

दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता

मुस्कुराता रहा जो बारिश में
दीन में मस्त कलन्दर होता

सर्द मौसम या तपन सूरज की
झेलता मैं तो सिकन्दर होता
-ऋता