खुशियों की ऊँचाई से
व्यथा की गहराई तक
अमराई की खुशबू से
यादों की तन्हाई तक
जाने कितनी नज्म कहानी
सिमट जाती हैं पुस्तक में
जितने लोग उतने दर्द
जितने लम्हे उतने क्षोभ
कुछ व्यक्त कुछ रहे अव्यक्त
अथाह मन की अनगिन सोच
बल खाती हैं पुस्तक में
भोर की रश्मियाँ सुनहरी
रुपहली चाँदनी घोर निशा की
तपती दुपहरी की धूप छाँव
गोधूलि की साँझ सिंदूरी
बिखर जाती हैं पुस्तक में
ज्ञान ध्यान की प्रेरक बातें
भुखे पेट की बोझिल रातें
प्रेम शाश्वत प्रेम सत्य है
एहसासों की मीठी मुलाकातें
अल्फाजों का रूप धरे
सज जाती हैं पुस्तक में
कुछ अतीत से सबक सिखाए
कुछ कसक दिल की कह जाए
जीवन के कुछ अद्भुत पल भी
पन्नों पर रोशनाई गिराए
मौन रही घुटती हुई साँसें
मुखरित होती हैं पुस्तक में
अमलतास जूही पुरवाई
चौबारा लीपे जो माई
लेखनी सब कुछ ही कहती
पगडंडी पर्वत और खाई
पीर घनेरी आहत मन की
मसक जाती है पुस्तक में
नन्हें होठों की किलकारी
बारिश बूँदों के बुलबुले
प्रेम पत्र के उड़ते पन्ने
बीबियों के प्यारे चुटकुले
जाने कितनी चाँदनी रातें
थिरक जाती हैं पुस्तक में
गर उद्गार जीवित हो जाएँ
फिर कहाँ कुछ बयाँ होगा
कोलाहल की बस्ती में फिर
बाकी न कोई निशाँ होगा
तूफानों से डरती अभिव्यक्ति
लिपट जाती है पुस्तक में
*ऋता शेखर ‘मधु’*