१.अफवाह....
बात बात की बात में बातें बन गईं परवाज|
सच्ची झूठी बातों से अफवाहों का हुआ आगाज|
धरती से उड़कर बातें पहुँची दूर गगन के पार,
बातों को मिल गई भीड़ की चटपटी आवाज|
२.आशा.........
घटाघोप अंधकार में एक किरण लहराई
तिमिर घिरे मन पर झट खुशियों की लाली छाई
दूर कहीं कोने में सिमटा जल रहा था दीपक
खुद पवन से जूझ उसने सबको राह दिखाई|
३.रोला मुक्तक......
राधा के मनमीत, यशोदा के हैं प्यारे|
नंद गोप के लाल, बिरज के राजदुलारे|
दीनों के वो नाथ, सहारा हैं दुखियों के,
रखें हृदय में आस,हरेंगे वे दुख सारे|
नंद गोप के लाल, बिरज के राजदुलारे|
दीनों के वो नाथ, सहारा हैं दुखियों के,
रखें हृदय में आस,हरेंगे वे दुख सारे|
४.मुक्तक....
भर के नीर नयनों में वन में थे भटक रहे|
हर तरु हर पात पर राम जी थे अटक रहे|
पूछते थे कण कण से,'मेरी सीते कहाँ गई',
विरह की यही वेदना लंकाकांड के घटक रहे|
(घटक-. कोई चीज घटित करने, बनाने या रचनेवाला)
हर तरु हर पात पर राम जी थे अटक रहे|
पूछते थे कण कण से,'मेरी सीते कहाँ गई',
विरह की यही वेदना लंकाकांड के घटक रहे|
(घटक-. कोई चीज घटित करने, बनाने या रचनेवाला)
५.
आसमाँ में टूटता एक सितारा देखा
दुआ माँगता हुआ एक बिचारा देखा
सबको ही पड़ी है अपनी अपनी
किसी के लिए न कोई सहारा देखा
६.
आसमाँ में टूटता एक सितारा देखा
दुआ माँगता हुआ एक बिचारा देखा
सबको ही पड़ी है अपनी अपनी
किसी के लिए न कोई सहारा देखा
६.
कहावतें यूँ ही नहीं बना करतीं...
नेकियाँ दरिया से नहीं ठना करतीं...
जब कई अनुभवें झेलती ज़िन्दगी...
तब टेढ़ी अँगुलि घी में सना करती...
७.मुक्तक....
अरुणाचल की लालिमा लिपटी भोरमभोर
मनभावन खगगान से जगी धरा चहुँओर
जाने को निज काम पर होती भागमभाग
उठा रसोई से धुँआ कलछी करती शोर
८.
हिसाब से ही खाइए...दूर रहेंगे मर्ज|
खर्च पर कंट्रोल रहे...नहीं चढ़ेंगे कर्ज|
बस मीठे दो बोल हों...और दया का भाव
रिश्तों में सुकून मिले...निभ जाएँ जो फ़र्ज|
९.
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी गुजरती रही
उम्र भी लम्हा लम्हा पिघलती रही
लौ आस्था की जो जलाई थी हमने
लम्हा लम्हा वही तो निखरती रही|
१०.
ह्म वेला में प्राची ने ............नारंगी कालीन बिछाई
स्वर्णिम चूनर ओढ़ ठुमक के उषा प्यारी भी इतराई
पायल नव वधुओं की झनकी खनक गये उनके कँगना
पंछियों के मधुर कलरव संग चूल्हे ने ली अँगड़ाई||.
.............................. .....................ऋता शेखर 'मधु'