लघुकथा....घर
वह बहुत खुश थी...उसने
राधा-कृष्ण की एक पेंटिंग बनाई थी...दौड़ी दौड़ी माँ के पास गई...माँ,इसे ड्रॉइंग
रूम में लगा दूँ...माँ - बेटा इसे तेरी भाभी ने बड़े प्यार से सजाया है...तेरा
पेंटिंग लगाना शायद उसे पसंद आए न आए...तू ऐसा कर, इसे सहेज कर रख...अपने घर में
लगाना|
शादी के बाद...सासू माँ...इस पेंटिंग को ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ?...बेटा...जो
जैसा सजा है वैसे ही रहने दो...इसे अपने घर में लगाना|
पति के साथ नौकरी पर...इसे ड्रॉइंग रूम में लगा देती हूँ...
पति-नहीं, अपने बेड रूम में लगाओ या कहीं और...यह मेरा घर
है...मेरी मर्जी से ही सजेगा|
पेंटिंग बक्से में बंद हो गया वापस...आज फिर वह उसी पेंटिंग को
लिए खड़ी थी...बेटे के ड्रॉइंग रूम में...सोच रही थी...क्या यह घर मेरा है?
.................................ऋता