रविवार, 13 अक्टूबर 2013

दो अपना वात्सल्य माँ, आँचल में सौगात



प्रथम दिवस को पूजतेजिनको हम सोल्लास|
पुत्री वह गिरिराज कीभरतीं जीवन आस||

चंद्र शिखर को सोहतावाहन बनता बैल|
पुत्री मिली यशस्विनीधन्य हुए हिमशैल||

अधीश्वरी है शक्ति कीब्रह्मचारिणी रूप|
सौम्यानन्दप्रदायिनीलागें ब्रह्मस्वरूप||
  
हो विकास सद्बुद्धि काअरु कुबुद्धि का नाश|
ब्रह्मचारिणी से मिलेहर पग दिव्य प्रकाश||

जिनकी ग्रीवा में बसेचंदा का आह्लाद|
चंद्रघंटा करें कृपाखुशियाँ हों आबाद||

त्रिविध ताप संसार काकुष्माण्डा में युक्त|
देवी की आराधनाकरती ताप विमुक्त||

बनी पाँचवें रूप मेंस्कन्द पुत्र की मात|
दो अपना वात्सल्य माँआँचल में सौगात||

यत्र तत्र सर्वत्र हैं, भाँति भाँति संताप|
देवी पंचम रूप मेंकरो निवारण आप||

कात्यायिनि अवतार मेंआईं ऋषि के द्वार|
माँ के आशिर्वाद सेमिला विजय का हार||

देवी सप्तम रूप मेंकरें काल का नाश|
पथ-बाधा को दूर करतम का करें विनाश||

महागौरी पधारतीं, धर कर सुंदर रूप|
मंत्रोच्चार गूँज उठा, जले सुगंधित धूप||

सिद्धिदात्रि का दिन नवम, पूर्ण करे नवरात|
जन जन का कल्याण हो, दे दो वर हे मात||

झूमे गरबा डाण्डिया, नाच रहा पंडाल|
हर पग में थिरकन बढ़ी, मचता खूब धमाल||

बुरा कभी न जीतता,यही जगत की रीत |
मन का रावण जब जले,बनता हृदय  पुनीत||


नवरात्रि एवं विजयदशमी की अनंत शुभकामनाएँ !!..........ऋता शेखर

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [14.10.2013]
    चर्चामंच 1398 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
    सादर
    सरिता भाटिया

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं

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