रविवार, 20 अक्टूबर 2013

191. पंछी गीत सुनाएँ...(माहिया)


1
कोयलिया जब बोली
हिय में हूक उठी
उर  ने परतें खोलीं।
2
उसकी शीतल बानी
पीर चुरा भागी
सूखा दृग से पानी।
3
पंछी गीत सुनाएँ
चार पहर दिन के
साज़ बजाते जाएँ ।
4
टिमटिम चमके तारे
रात सुहानी है
किलके बच्चे सारे ।
5
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये  अलबेली।
6
सूरज पाँव पसारे
जाग गई धरती
खग बोले भिनसारे।
7
जीवन सफ़र सुहाना
गम या खुशियाँ हों
गाता जाय तराना।
8
जागो  रे सब जागो
नव निर्माण करो
आलस को अब त्यागो।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आदरेया।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही उम्दा माहिये ... मज़ा आ गया ...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!