रविवार, 27 अक्टूबर 2013

लघुकथा....घर


लघुकथा....घर
 वह बहुत खुश थी...उसने राधा-कृष्ण की एक पेंटिंग बनाई थी...दौड़ी दौड़ी माँ के पास गई...माँ,इसे ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ...माँ - बेटा इसे तेरी भाभी ने बड़े प्यार से सजाया है...तेरा पेंटिंग लगाना शायद उसे पसंद आए न आए...तू ऐसा कर, इसे सहेज कर रख...अपने घर में लगाना|
शादी के बाद...सासू माँ...इस पेंटिंग को ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ?...बेटा...जो जैसा सजा है वैसे ही रहने दो...इसे अपने घर में लगाना|
पति के साथ नौकरी पर...इसे ड्रॉइंग रूम में लगा देती हूँ...
पति-नहीं, अपने बेड रूम में लगाओ या कहीं और...यह मेरा घर है...मेरी मर्जी से ही सजेगा|
पेंटिंग बक्से में बंद हो गया वापस...आज फिर वह उसी पेंटिंग को लिए खड़ी थी...बेटे के ड्रॉइंग रूम में...सोच रही थी...क्या यह घर मेरा है?

.................................ऋता

8 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ की झर्बेरियाँ हैं इस लघु कथा में। पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं।

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  2. अक्सर सब कुछ अपना होकर भी कितना पराया सा प्रतीत होता है
    यही सच्चाई है जिंदगी की
    सादर !

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  3. behad bhavuk karti huyi kahani …. aksar ladki ke jeevan ka sach aisa hi hota hai

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