स्त्री एक-विशेषण अनेक
स्त्रियों का जावन हमेशा से दूसरों का मोहताज रहा है| स्त्री सबसे सहज और सरल विवाह के पहले
बेटी और बहन के रूप में रह पाती है| किन्तु बचपन से ही यहाँ भी उसे मानसिक रूप से
तैयार किया जाता है कि पिता का घर उसका घर नहीं| लड़की फिर भी विवाह के पहले घर पर
अधिकार जताती रहती है| उसकी
बातों को मान्यता दी जाती है| कमोबेश यह स्थिति सुखद ही होती है|
सबको एक जैसा जीवन या एक जैसी परिस्थिति नहीं मिलती| सब कुछ
अनुकूल रहा तो विवाह योग्य होने पर लड़की विवाहबंधन में बँध जाती है| वह एक पल जिस
वक्त वह सुहागप्रतीक सिन्दूर या मंगलसूत्र धारण करती है, उसके जीवन में बहुत सारे
विशेषण जुटने की पृष्ठभूमि तैयार कर देता है| हमने हर परिस्थिति की महिलाओं के लिए
समाज में विभिन्न विचार देखे| सारे विवाहप्रतीक धारण की हुई ‘सुहागन’ स्त्री के
लिए सम्मानपूर्ण सम्बोधन और विचार होते हैं| किन्तु इस सम्मानपूर्ण स्थिति के लिए
जिम्मेदार लड़की के पति या सास ससुर ही होते हैं| एक अच्छा घर हर स्वभाव की लड़की
को अच्छे से रखकर समाज में सम्मान दिलाता
है| यदि थोड़े भी टेढ़े मेढ़े विचार वाले लोग मिल गए तो एक से एक सुशील लड़की भी
समाज की नजरों में बुरी साबित कर दी जाती है| तो लड़की का अच्छा या बुरा कहा जाना
उसके ससुरालवालों पर निर्भर करता है , न कि उसके अपने व्यक्तित्व पर| लड़किया
ज्यादातर सुशील और मिलजुल कर रहने वाली ही होती हैं|
एक बदचलन और आवारा पति,या किसी अन्य कारण से पति- पत्नी अलग हो
गए हों तो ‘परित्यक्ता’ की उपाधि से विभूषित लड़की कितनी भी काबिल क्यों न हो,अवहेलना-
सहानुभूति का पात्र बन जाती है| वह कितना भी अच्छा व्यवहार करे, समाज में वह
सम्मान नहीं पा पाती जिसकी वह हकदार है| जमाना बदल चुका है पर घर के अन्दर की
तथाकथित सुहागन रिश्ते उसे यह एहसास दिलाते रहते हैं कि वह एक छोड़ी गई स्त्री है|
स्त्री के लिए एक विशेषण ‘तलाकशुदा’ है| इन स्त्रियों के लिए
समाज की नजर बदल जाती है| हर पग पर उन्हें शक की दृष्टि से देखा जाता है| घर की पति
के साथ रहने वाली महिलाए अन्य पुरुषों के साथ कितने भी हँसी मजाक कर लें , उन्हें
कोई कुछ नहीं कहता, तलाकशुदा ने दो बातें कर लीं तो समाज की भवें तन जाती हैं|
तलाकशुदा महिलाओं को लोग तेजतर्रार की श्रेणी में रखते हैं| मैंने एक लेखिका के विचार पढ़े थे-'मैं विधवा कहलाना पसन्द करूँगी मगर तलाकशुदा नहीं|'
तलाकशुदा या परित्यक्ता वाली स्थिति मनुष्यजन्य परिस्थितियाँ
हैं | एक परिस्थिति ईश्वरजनित होते है और वह है ‘विधवा’ हो जाना| विधवाओं को किसी
भी मंगलकार्य से दूर रखा जाना सर्वविदित है| इस तरह की महिलाएँ परिवार में किसी
शुभ कार्य में जाने से कतराने लगती हैं|
यही सारी परिस्थितियाँ पुरुषों के सामने भी होती हैं मगर उन्हें
कोई कुछ नहीं कहता| तन से नाजुक, मन से सरल स्त्रियों के लिए इतने भारी भारी
विशेषणों के बोझ उनके जीवन को दुरूह बना दते है| अब पहले जैसी बात नहीं लगती ,मगर
पूरी तरह से जमाना बदल गया है यह कहना भी मुश्किल है|
एक विशेषण है ‘बाँझ’, मगर बाँझपन का मूल कारण क्या है यह कोई
नहीं जानना चाहता| इन स्त्रियों को भी परिवार में जन्मोत्सव या बच्चे से सम्बन्धित
शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है|
इस प्रकार बेकसूर होते हुए भी सामाजिक अवहेलना की
शिकार इन स्त्रियों के प्रति रवैया बदलना आवश्यक है ताकि वे हीन भाव से बाहर आ
सकें| पल भर में कौन किस श्रेणी में आ जाएगा यह कोई नहीं जानता ...फिर अनावश्यक
टीकाटिप्पणी क्यों ? स्त्री तो बस स्त्री है, ममता है, दुआ है, शुभकामना है, और
कुछ भी नहीं|