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रविवार, 27 अक्टूबर 2013

लघुकथा....घर


लघुकथा....घर
 वह बहुत खुश थी...उसने राधा-कृष्ण की एक पेंटिंग बनाई थी...दौड़ी दौड़ी माँ के पास गई...माँ,इसे ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ...माँ - बेटा इसे तेरी भाभी ने बड़े प्यार से सजाया है...तेरा पेंटिंग लगाना शायद उसे पसंद आए न आए...तू ऐसा कर, इसे सहेज कर रख...अपने घर में लगाना|
शादी के बाद...सासू माँ...इस पेंटिंग को ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ?...बेटा...जो जैसा सजा है वैसे ही रहने दो...इसे अपने घर में लगाना|
पति के साथ नौकरी पर...इसे ड्रॉइंग रूम में लगा देती हूँ...
पति-नहीं, अपने बेड रूम में लगाओ या कहीं और...यह मेरा घर है...मेरी मर्जी से ही सजेगा|
पेंटिंग बक्से में बंद हो गया वापस...आज फिर वह उसी पेंटिंग को लिए खड़ी थी...बेटे के ड्रॉइंग रूम में...सोच रही थी...क्या यह घर मेरा है?

.................................ऋता

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

192..कसीदाकारी












आज दर्द का इक टुकड़ा 
फ़लक में उड़ा दिया हमने
चंद ख्वाबों से हँसकर
पीछा छुड़ा हमने
चाँद से चुराकर एक किरन
जीवन की चादर पर
कसीदाकारी की है
बड़े जतन से
समेटकर शबनम
यादों की रुनझुन पायल पर
मीनाकारी की है
होठों पर सजाकर
मुसकान की कलियाँ
खुश्बुओं को ओढ़ने की
अदाकारी की है
ऐ जिन्दगी,
तुम भी तो हम इंसानों के संग
तरह तरह की बाजीगरी दिखाती हो
तुम्हारी प्रतिद्वंदि बन कर
तुमसे टक्कर लेने को
फिर क्यूँ न हम भी कारीगरी कर जाएँ|

.........................ऋता

रविवार, 20 अक्टूबर 2013

191. पंछी गीत सुनाएँ...(माहिया)


1
कोयलिया जब बोली
हिय में हूक उठी
उर  ने परतें खोलीं।
2
उसकी शीतल बानी
पीर चुरा भागी
सूखा दृग से पानी।
3
पंछी गीत सुनाएँ
चार पहर दिन के
साज़ बजाते जाएँ ।
4
टिमटिम चमके तारे
रात सुहानी है
किलके बच्चे सारे ।
5
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये  अलबेली।
6
सूरज पाँव पसारे
जाग गई धरती
खग बोले भिनसारे।
7
जीवन सफ़र सुहाना
गम या खुशियाँ हों
गाता जाय तराना।
8
जागो  रे सब जागो
नव निर्माण करो
आलस को अब त्यागो।

बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

190.अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है




कौम और मजहब की गिनती किसने गिनाई है
निर्दोष जन में अलगाव की आग किसने लगाई है

रोटी कपड़ा मकान की जरूरत है सभी को
अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है

हवा की सरसराहटों में है खौफ़ का धुँआ
ख्वाबों की बस्ती में छा रही तन्हाई है

तीरगी में नूर-ए-अज़्म इस कदर चमका
अदब से जीस्त ने तज़ल्ली से हाथ मिलाई है

मुसव्विर की कारीगरी से आबाद है दुनिया
ऐ बशर, तू क्यों कर रहा उससे बेवफाई है
................ऋता

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

189.श्रीराम सियाजी को लाने चले...













वैदेही को वापस पाने चले
श्रीराम सियाजी को लाने चले|

श्रीलंका में बैठी सीता
सब कुछ लगता रीता रीता
व्याकुल रघुपति बिन परिणीता
वैदेही को वापस पाने चले
श्रीराम सियाजी को लाने चले|

सिंधु को पुकारकर
वरुण को ललकार कर
धनुष को टंकारकर
वैदेही को वापस पाने चले
श्रीराम सियाजी को लाने चले|

करके भगवती का वंदन
अर्पित किए पद्म अरु चंदन
लेके संग अनुज रघुनंदन
वैदेही को वापस पाने चले
श्रीराम सियाजी को लाने चले|

शिव जी का पाकर आशीष
पुलकित हुए कोशलाधीश
लंकापति का उड़ाए शीश
वैदेही को वापस पा ही गए
श्रीराम सियाजी संग आ ही गए|
................ऋता

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

दो अपना वात्सल्य माँ, आँचल में सौगात



प्रथम दिवस को पूजतेजिनको हम सोल्लास|
पुत्री वह गिरिराज कीभरतीं जीवन आस||

चंद्र शिखर को सोहतावाहन बनता बैल|
पुत्री मिली यशस्विनीधन्य हुए हिमशैल||

अधीश्वरी है शक्ति कीब्रह्मचारिणी रूप|
सौम्यानन्दप्रदायिनीलागें ब्रह्मस्वरूप||
  
हो विकास सद्बुद्धि काअरु कुबुद्धि का नाश|
ब्रह्मचारिणी से मिलेहर पग दिव्य प्रकाश||

जिनकी ग्रीवा में बसेचंदा का आह्लाद|
चंद्रघंटा करें कृपाखुशियाँ हों आबाद||

त्रिविध ताप संसार काकुष्माण्डा में युक्त|
देवी की आराधनाकरती ताप विमुक्त||

बनी पाँचवें रूप मेंस्कन्द पुत्र की मात|
दो अपना वात्सल्य माँआँचल में सौगात||

यत्र तत्र सर्वत्र हैं, भाँति भाँति संताप|
देवी पंचम रूप मेंकरो निवारण आप||

कात्यायिनि अवतार मेंआईं ऋषि के द्वार|
माँ के आशिर्वाद सेमिला विजय का हार||

देवी सप्तम रूप मेंकरें काल का नाश|
पथ-बाधा को दूर करतम का करें विनाश||

महागौरी पधारतीं, धर कर सुंदर रूप|
मंत्रोच्चार गूँज उठा, जले सुगंधित धूप||

सिद्धिदात्रि का दिन नवम, पूर्ण करे नवरात|
जन जन का कल्याण हो, दे दो वर हे मात||

झूमे गरबा डाण्डिया, नाच रहा पंडाल|
हर पग में थिरकन बढ़ी, मचता खूब धमाल||

बुरा कभी न जीतता,यही जगत की रीत |
मन का रावण जब जले,बनता हृदय  पुनीत||


नवरात्रि एवं विजयदशमी की अनंत शुभकामनाएँ !!..........ऋता शेखर

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

आया कहाँ से, जाना कहाँ है...



आया कहाँ से, जाना कहाँ है...

सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है

कलकल नदिया थम चुकी
नीरव संध्या की बेला में
हे ! मनुज, तू नौका पर
किस चिंतन में खोता है

आया कहाँ से, जाना कहाँ है
डूबेगा मझधार में या
किनारे भी मिल जाएँगे
सोच सोच क्यूँ रोता है

जीवन के इस सांध्य में
पंछी नीड़ में दुबक गए
कहीं कोई न दिखे सहारा
क्यूँ शून्य में नयन भिगोता है

बस उसका ही ध्यान कर
मन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है

हम मात्र कठपुतली हैं
हर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|
...ऋता


शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

थाली सजे हैं धूप चंदन...माँ दुर्गा हरिगीतिका में


हे अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
आद्या जया दुर्गा स्वरूपा, शक्ति का आधार हो।
शिव की प्रिया नारायणी, हे!, ताप हर कात्यायिनी।
तम की घनेरी रैन बीते, मात बन वरदायिनी।१।।

भव में भरे हैं आततायी, शूल तुम धारण करो।
हुंकार भर कर चण्डिके तुम, ओम उच्चारण करो।
त्रय वेद तेरी तीन आखें, भगवती अवतार हो।
काली क्षमा स्वाहा स्वधा तुम, देव तारणहार हो।२।।

कल्याणकारी दिव्य देवी, तुम सुखों का मूल हो।
भुवनेश्वरी आनंद रूपा, पद्म का तुम फूल हो।
भवमोचनी भाव्या भवानी, देवमाता शाम्भवी।
ले लो शरण में मात ब्राह्मी, एककन्या वैष्णवी।३।।

गिरिराज पुत्री पार्वती ही, रूप नव धर आ रही।
थाली सजे हैं धूप चंदन, शंख ध्वनि नभ छा रही।
देना हमें आशीष माता, काम सबके आ सकें।
तेरे चरण की वंदना में, हम परम सुख पा सकें।।४।।
ऋता शेखर 'मधु'

बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

सुनहरे ख्वाबों ने पकड़ बनाई है...

आज डालियाँ फिर झूम के लहराई हैं
खुश्बू-ए- उल्फत फिजा में छाई है

रब ने कुबूल कर ली दुआ उसकी
सुनहरे ख्वाबों ने पकड़ बनाई है

बरगद की छाया मिलती नहीं है अब
क्या करें यह भी बना बोनसाई है

धूप की तपन को क्यूँ हम दोष दें
बिन उसके ऊर्जा भी तो नहीं समाई है

यह उनकी मुस्कुराहटों का ही कमाल था
हजार जुगनुओं की चमक मुख पे छाई है

.........ऋता