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बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

सुनहरे ख्वाबों ने पकड़ बनाई है...

आज डालियाँ फिर झूम के लहराई हैं
खुश्बू-ए- उल्फत फिजा में छाई है

रब ने कुबूल कर ली दुआ उसकी
सुनहरे ख्वाबों ने पकड़ बनाई है

बरगद की छाया मिलती नहीं है अब
क्या करें यह भी बना बोनसाई है

धूप की तपन को क्यूँ हम दोष दें
बिन उसके ऊर्जा भी तो नहीं समाई है

यह उनकी मुस्कुराहटों का ही कमाल था
हजार जुगनुओं की चमक मुख पे छाई है

.........ऋता

6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया सादर प्रणाम |
    कहतें हैं देखने वालो की आँखों में खूबसूरती बसती हैं ,उर्दू के मीथे शब्दों ने खूबसूरतीकों अदभुत बयाँन किया हैं |
    बाटनी की भाषा में ,शब्दों ने तो जादू ही कर दिया ................खूबसूरत रचना |
    “महात्मा गाँधी :एक महान विचारक !”

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  2. बरगद की छाया मिलती नहीं है अब
    क्या करें यह भी बना बोनसाई है ..

    क्या लाजवाब सेर है ... आज के सच को लिखा है ... भावपूर्ण ...

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  3. वाह..बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
    सुन्दर...
    :-)

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  4. "यह उनकी मुस्कुराहटों का ही कमाल था
    हजार जुगनुओं की चमक मुख पे छाई है"
    बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ

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