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मंगलवार, 30 अगस्त 2011

हरतालिका तीज


हरतालिका तीज





 यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की तृतीया को किया जाता है|सुहागिन स्त्रियाँ ही इस व्रत को करती हैं| इस व्रत में शंकर पार्वती का पूजन करने का विधान है| सुहागिनें इस व्रत को बड़े उल्लास से मनाती हैं| इस व्रत की कथा इस प्रकार है|
    एक बार पार्वती जी ने शिव जी का वरण करने के लिए
हिमालय पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या आरम्भ की| उनकी तपस्या को देख नारद मुनि ने जाकर उनके पिता हिमालय से कहा कि भगवीन विष्णु उनकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं| हिमालय ने इस बात को सच माना और विवाह के लिए हामी भर दी| जब पार्वती जी को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ| वह विलाप करने लगीं| उनकी सहेली ने विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताई और शिव से विवाह करने का अपना संकल्प दोहराया| अपनी सखी की सहायता से वह घोरवन में चली गईं और कठिन तपस्या करने लगीं|
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को बालू से शिवजी बनाकर पूजा अर्चना कीं| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने दर्शन दिया और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करने का वचन दिया| तभी हिमालयराज भी आ गए| उन्होंने भी पुत्री के जिद को मान लिया और शिव से उनका विवाह करने के लिए तैयार हो गए|
चूंकि पार्वती जी को उनकी सखी हरण कर वन में ले गई थी इसलिए इस व्रत का नाम हरित-आलिंक पड़ा जो अब हरतालिका व्रत के नाम से जाना जाता है|
उस दिन शिव जी ने यह भी वचन दिया कि भाद्र शुक्ल तृतीया को जो भी सुहागिन स्त्रियाँ इस व्रत को करेंगी उन्हें वे अखंड सौभाग्य का वरदान देंगे|
अतएव सुहागिन स्त्रियाँ इस व्रत का पालन अवश्य करती हैं|
मूलरूप से यह व्रत उत्तर भारत में प्रचलित है|
                                                          ऋता शेखर मधु
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गणेश चतुर्थी


भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है| इस दिन व्रत रखा जाता है| इस व्रत के करने से सभी प्रकार की बाधाएँ मिट जाती हैं|

इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक बार भगवान शंकर हिमालय से भीमबली नामक स्थान पर गए|वहाँ पार्वती जी पहले से रह रही थीं| पार्वती जी ने वहाँ एक पुतला बनाकर उसे सजीव कर दिया था और उसका नाम गणेश रखा था| गणेश को उन्होंने गुफा के द्वार पर पहरे पर यह कहकर बिठा दिया था कि कोई अन्दर न आने पाए|
जब भगवान शंकर वहाँ पहुँचे तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया क्योंकि वे उन्हें पहचानते नहीं थे| इसपर शंकर कुपित हो गए| उन्होंने गणेश का सिर काट दिया और अन्दर चले गए| उन्हें अन्दर देख पार्वती जी को आश्चर्य हुआ| उन्होंने शंकर जी से गणेश के बारे में पूछा| शंकर जी ने कहा कि वह बालक धृष्ट था इसलिए उन्होंने उसका सिर काट दिया| यह सुन पार्वती जी विलाप करने लगीं| उन्होंने शंकर जी को बताया कि गणेश उनके पुत्र थे|
शंकर जी चिन्ता में पड़ गए| संयोग से उसी वक्त एक हथिनी ने एक बच्चे को जन्म दिया था| शंकर भगवान ने उसी बच्चे का सिर काट लिया और गणेश के सिर पर जोड़ दिया| गणेश जी का पुनर्जन्म हो गया| यह घटना भाद्र शुक्ल चतुर्थी की है| तभी से इस दिन को गणेश जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है|

                                          ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

अमर प्रेम का मंदिर

अमर प्रेम का मंदिर

कई कहानियाँ ऐसी होती हैं जो इतिहास के पन्नों मे दबी रहती हैं और कई हमारे बुजु़र्गों की यादों में बसी रहती हैं|ऐसी ही एक कहानी मेरी नानी ने मुझे बचपन में सुनाई थी|
पटना में मीठापूर के निकट पुरंदरपुर में एक नाग मंदिर है जहाँ नागपंचमी के दिन दूध और लावा चढ़ाने वालों का ताँता लगा रहता है|श्रद्धालुओं के लिए वह पूजा स्थल है किन्तु जिन लोगों को मंदिर निर्माण के कारणों का पता है उनके लिए यह अमर प्रेम का मंदिर है|
यह कहानी लगभग अस्सी साल पहले की है| एक दिन सुबह-सुबह सारे मुहल्ले में शोर मच गया कि एक काला नाग गया रेलवे लाइन की पटरी पर फुँफकार छोड़ता बड़े वेग से पुनपुन की तरफ़ से चला आ रहा था| उसकी चाल बता रही थी कि वह नाग गुस्से में था| बहुत सारे लोग रेलवे लाइन के किनारे-किनारे दौड़ते शोर मचाते चले आ रहे थे| वे यह जानना चाहते थे कि नाग कहाँ जा रहा है|वह नाग अचानक मीठापूर के निकट रुक गया| उसने बड़ा सा मुँह फाड़कर खून से लथपथ एक टुकड़ा उठाया जो एक अन्य काले नाग का था| अब लोगों का ध्यान गया कि पटरी के अगल बगल वैसे ही कई टुकड़े बिखरे पड़े थे| वह काला नाग बड़े-बड़े मुँह खोलकर सारे टुकड़ों को एक स्थान पर इकट्ठा कर रहा था| जब सारे टुकड़े जमा हो गए तब नाग ने उन टुकड़ों के चारो ओर अपने शरीर का घेरा बनाया और अपना सर पटकने लगा|
सारे ही लोग यह तमाशा देख रहे थे किन्तु किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई उसके निकट जाए| अपना सर पटकते-पटकते नाग लहुलुहान हो गया और धीरे-धीरे मूर्छित होकर उसने अपने प्राण त्याग दिए| यह दृश्य देखकर कइयों की आँखों में आँसू आ गए|
हुआ यह था कि पौ फटने से पहले एक नाग रेलगाड़ी से कई टुकड़ों में कट गया था|
यह तो पता नहीं कि प्राण त्यागने वाला नाग था या नागिन थी, किन्तु यह मार्मिक दृश्य प्रेम की मिसाल बन गया| स्थानीय लोगों ने चंदा इकट्ठा करके उस स्थल पर
नाग-मंदिर का निर्माण किया| वह मंदिर नाग-स्थान के नाम से जाना जाता है|
         
                                                     ऋता शेखर मधु

शनिवार, 20 अगस्त 2011

जन्माष्टमी (2011) के शुभ अवसर















 मैंने जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर
श्री-मद्-भगवद्-गीता के प्रादुर्भाव को
कविता के रूप में प्रस्तुत करने की
कोशिश की है|


गीता-प्राकट्य
आबालवृद्ध  नर नारी जानें
कथाओ का संग्रह है भारत
उन कथाओं में महाकथा है
नाम है जिसका महाभारत|

सौ पुत्रों वाले एक पिता थे
नाम था जिनका धृतराष्ट्र
पुत्र-प्रेम की मिसाल बने
किस्सा जाने सारा राष्ट्र|

आँखों से वे अन्धे थे
सन्तति-प्रेम में भी थे अन्धे
विचार किया न भले बुरे का
बँट गए सारे अपने बन्दे|

सहस्र पुत्र धृतराष्ट्र के
इकट्ठे कहे गए कौरव
शकुनि के बहकावे में
बन न सके भारत का गौरव|


धृतराष्ट्र के थे पाँच भतीजे
कहलाते थे वे पाँडव
धृतराष्ट्र अपने पुत्रों को रोक सके न
करवा बैठे घर में ही ताँडव|

सौ पुत्रों में एक पुत्र था
नाम था जिसका दुर्योधन
उस पुत्र के कुविचारों का
किया नहीं पिता ने संशोधन|

अनुजों की भार्या पर डाल नजर
कौरवों ने लाँघी सीमा मर्यादा की
द्रौपदी के साथ देख अभद्रता
पाँडवों ने लाँघी सीमा धैर्य की|

शायद विधि का था यही विधान
प्रयासों से भी न हुआ संधान||

सबसे बड़ा युद्ध धरती का
रणभूमि बन गया कुरुक्षेत्र
कौरव-पाँडव का भिड़ंत हुआ
युद्धभूमि कहलाया धर्मक्षेत्र|

सारे बन्धु-बाँधव बँट गए
सेना बँटी दो भागों में
किसी ने चुना कौरवों को
कोई गया पाँडव में|

युद्धभूमि में पाँडव अर्जुन ने
सारथी श्रीकृष्ण से किया अनुरोध
देखना चाहता आदरणीय जनों को
हो गया जिनसे अनसुलझा विरोध|

युद्ध आरम्भ करने से पहले
अर्जुन ने कौरव-सेना पर डाली नजर
पितामह और गुरु को देखा
उठने लगा दुविधा का भँवर|


युद्धक्षेत्र में किया अच्युत(कृष्ण) ने
दुविधा का समाधान
दिया उपदेश सांसारिकता का
वही बना गीता का ज्ञान|

गान हुआ श्रीविष्णु के मुख से
श्री-मद्-भगवद्-गीता बना
पवित्र, श्रेष्ठ और महान||

              ऋता शेखर मधु

रविवार, 14 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस

India Flag Animated gifs15th August Independence Day and Graphics
स्वाधीनता दिवस
राष्ट्रनायकों का करें हम सब मिल अभिनंदन
लहरा के भारतध्वज गाएँ मिल कर जयमंगल
भारत माता का दिव्य मुख गर्व से है चमक रहा
पाए हैं सच्चे राष्ट्र सपूत मुक्ति दिवस है मन रहा
लाल किला भी गौरव से पुलकित हुआ जाता है
चौंसठ वर्षों से तिरंगा उसपर ही फहराया जाता है|
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मैं जब भी स्वतंत्रता आंदोलन की कहानियाँ पढ़ती हूँ तो
जिनकी कहानियाँ मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं 
उन्हें मैंने चन्द पंक्तियों में उतारने की कोशिश की है|

महारानी लक्ष्मीबाई
भारत भूमि को गौरवान्वित करने
आई थी एक वीरांगना
जन्म ले धन्य किया मनु ने
मोरोपन्त-भागीरथी का अँगना
माता होती भविष्य निर्माता
भागीरथी ने यह सिद्ध किया
स्वदेश प्रेम की गहरी भावना
मनु के हृदय में भर दिया
तीरंदाजी घुड़सवारी ही
उसके प्रिय खेल थे
शस्त्र विद्या में निपुण थी
शास्त्र में भी बनी निपुण
मैं अपनी झाँसी अंग्रेजों को नहीं दूँगी
लक्ष्मीबाई के इस एलान ने
ब्रिटिश शासन को हिला दिया
भारत के जन-जन मन-मन में
स्व का दीप झिलमिला गया|
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भगतसिंह


आज़ाद भारत की कहानी
लिखी जिसने देकर कुर्बानी
परतंत्रता की बेड़ी को तोड़
किया जनमानस को उद्वेलित
वह शूरवीर बलिदानी था
नाम था उसका भगतसिंह
साथ सुखदेव राजगुरु के
ब्रिटिश शासन को ललकार दिया
हँसते हँसते फाँसी का फंदा
गले में वरमाला सा डाल लिया
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चंद्रशेखर आजाद

थे वह भारत माँ के पुत्र स्वाभिमानी
व्यक्तित्व और प्रतिज्ञा के धनी
थे अपनी धुन के पक्के
उनकी निडरता ने किया
अंग्रेजों के दाँत खट्टे
देशभक्तों के हृदय सम्राट
रूप दिखाया अपना विराट
भारत की आजादी को
नाम अपना लिया आजाद
पिता का नाम स्वतंत्रतारखा
जेलखाना को बता दिया बसेरा
क्रांतिकारी उनके विचार थे
ले आए भारत में नया सवेरा
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सुभाष चन्द्र बोस

 

सुभाष बोस की कीर्ति-कौमुदी
सुरभित हो उठी दिग्दिगन्त
समग्र जीवन किया न्योछावर
झुकाया अंग्रेजों को जीवन पर्यन्त
जापान में, आजाद हिन्द फौज के
बन गए वह सेनापति
देख बोस की संगठन-शक्ति
विश्व की, दाँतों तले उँगली दबी
फौज को
चार भागों में किया विभाजित
नाम भी रखा प्रेरणार्थक
गाँधी-ब्रिगेड,  नेहरू-ब्रिगेड
सुभाष-ब्रिगेड, आजाद-ब्रिगेड
महिलाओं की अलग फौज थी
नाम झाँसी रानी रेजीमेन्ट
बच्चों की भी टुकड़ी थी
धमाल मचाया जमकर
''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा''
सुभाष के इस एलान से
देशभक्तों में जोश नया ही भर गया|
                                    ऋता शेखर मधु
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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षाबंधन - शुभकामनाओं सहित...



आस का पंछी
बहनें होती हैं चंचल चिड़िया
फुदक फुदक कलरव करतीं
फिर घर आँगन सूना करके
कहीं और चहकने उड़ जातीं
राखी के दिन यह चिड़िया
Birds Scraps and Graphics











बन जाता है आस का पंछी
सुबह सवेरे भइया के मुँडेरे
मीठे तान का सुर सजाता
पंछी के सुमधुर गुंजन को
सिर्फ़ भइया ही सुन पाता
नैनों में स्नेह भरे
संवेदन से वह भर जाता
समेट भइया की संवेदना
आस का पंछी लौट आता
नयन भले ही उदास लगें
हृदय खुशी से फूला न समाता|

वह घर होता नीरस-नीरस
जहाँ  बहनें  नहीं  होतीं
शान्त स्तब्ध बोझिल सा
हवाएँ  होतीं  स्पंदनहीन
न झगड़े न मान मनौवल
न स्नेह भरी गुप-चुप बातें
बिन बेटी घर होता जैसे
बिन  घंटी  का  मंदिर|

ऋता शेखर 'मधु'



शनिवार, 6 अगस्त 2011

मित्रता दिवस


मित्रता दिवस पर आप सबको ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएँ...
                                                                        
आज मैं दो कविताएँ पोस्ट कर रही हूँ |
पहली कविता मैंने उस सहेली के लिए लिखी है जिसे मैंने 
इंटरनेट पर आने के बाद फेसबुक पर ढूँढा और छब्बीस सालों के बाद उससे सम्पर्क कर पाई|यह संयोग की बात है कि जुलाई महीने में उसके परिणय की रजत जयंती थी|मेरी दोस्त पेशे से चिकित्सक है|

दूसरी कविता मैंने अपनी माता जी की सहेली के लिए लिखी है| मेरी माँ और उनकी सहेली एक ही विद्यालय में शिक्षिका थीं और उनका साथ लगातार तीस सालों का था| यह कविता मैंने बच्चों की और से उनके परिणय की 
स्वर्ण जयंती के अवसर पर लिखा था|

[1]

शुभ-कामना

कुछ विस्मृत पल थे
कुछ मिटे चित्र थे
कुछ भूली बिसरी यादें थीं
उन यादों से निकल कर आई
प्यारी सी एक मेरी सखी
मानव सेवा में तत्पर
नव जीवन का  कराती सृजन
जिस जगह हम साथ खड़े थे
वह पायदान था विद्यार्थी जीवन
ध्यान विज्ञान गृहज्ञान में माहिर
माला का हर मोती चमकाती
कर्म धर्म मित्रता की खातिर
सरल हृदय से वह जुट जाती
जीवन पथ पर संग सखी के
खड़े हैं उसके जीवन साथी
सफल वैवाहिक जीवन का
पच्चीस बसंत बन गया है साक्षी
रजत जयंती की शुभ घड़ी है आई
हृदय का हर कोना बोल रहा
बधाई, बधाई और सिर्फ बधाई

         ऋता शेखरमधु


[2]
बधाई
हम नन्हें नन्हें परिंदे
चह चह कर यह कहते हैं
बरगद वृक्ष है हमारा बसेरा
दादा दादी के घर में रहते हैं
उनके वरद हस्त के छाँव तले
हम बेफ़िक्र विचरते रहते हैं
कभी मनाया था हमने भी
दादा दादी की स्वर्ण जयंती
आशीर्वादों से उन दोनों ने
भर दी थी हम सब की झोली
सदा ही सुनी आपकी चर्चा
श्रद्धा से नतमस्तक रहते हैं
सात्त्विक चेतनाजागृत हो
यही कामना करते हैं
आज आपके परिणय की
स्वर्ण जयंती है आई
हम बच्चे समवेत स्वर में
दे रहे आपको बहुत बधाई
पापा मम्मी बूआ चाचा
सब शुभकामना दे रहे
पाँच दशक का साथ आपका
दस दशक में परिणत हो
हमारी दादी माँ कह रहीं
सर्वत्र सर्वदा शुभ ही शुभ हो|

               नन्हें परिंदे
(ऋता शेखर मधु के सौजन्य से)




      

सोमवार, 1 अगस्त 2011

बारिश की प्रथम बूँद


बारिश की प्रथम बूँद
Rain Graphics and Scraps
                                  फोटो-Friends18.com से साभार

घटा छाई घनघोर सखी री
नाचे मन का मोर
बूँद-बूँद बरसा नीर सखी री
तन मन हुआ विभोर
सोंधी खुशबू उड़ी सखी री
मन में उठा हिलोर
भीग  गई  चूनर सखी री
गीली हुई साड़ी की कोर
पौधे झूमें लहराएँ सखी री
हुआ भँवरों का शोर
खिले सुमन सुंदर सखी री
जी चाहे लूँ बटोर
चाँदनी शीतल हुई सखी री
टक टक तके चकोर
आए किसी की याद सखी री
क्या संध्या क्या भोर
मन हुलसा तन हुलसा सखी री
चले न कोई जोर
बूँद बन गई धारा सखी री
बहे किसी भी ओर
चल बारिश में चल सखी री
भूलें ओर और डोर
आ  झूला  झूलें  सखी री
छू लें गगन का छोर|

             ऋता शेखर मधु

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