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रविवार, 8 सितंबर 2013

शिक्षित बन नवगीत रच दो











यूँ फ़लक को चूमने की
और हवा में घूमने की
आरजू है नव उमंग की
कोशिशें हैं नव तरंग की
आगाज तुम नव उदय का
साज तुम मधुर हृदय का
ले चलो ये कश्तियाँ तुम
बनोगे इक दिन हस्तियाँ तुम
राष्ट्रगिरी को तुम उठा लो
बन कान्हा सबको बचा लो
नव सुरों में राग भर दो
शिक्षित बन नवगीत रच दो
तुम धरा के नव श्रृंगार हो
खिले बसंत के पुष्पहार हो
बाल मन है सदा ही निश्छल
चहक रहा है खग सा हर पल
भारत का नव निर्माण करो
जीने का पथ आसान करो
नव अंकुरों को मिले जो पोषण
भारत वतन बन जाएगा रौशन|

................ऋता

10 टिप्‍पणियां:

  1. देश का निर्माण हो ... तो सब का कल्याण स्वत ही हो जाएगा ...
    भाव पूर्ण प्रस्तुति ...

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  2. सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (11-09-2013) को हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित- : चर्चा मंच 1365- में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    आप सबको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुंदर रचना ..
    आशाएं पूर्ण हों !!

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  4. राष्ट्र उत्थान के भावों से सजी धड़ी सुन्दर रचना

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  5. बहुत बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक पोस्ट |

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  6. प्रभावी कविता...सच कहा ...नव अंकुरों को मिले जो पोषण---तन, मन का तो देश निर्माण स्वयं हो होजायगा...

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  7. नव अंकुरों को मिले जो पोषण
    भारत वतन बन जाएगा रौशन|

    बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रेरक अभिव्यक्ति,,

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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