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सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

अरुण निशा के बीच दिवस का बीता जाए पल


१.
अरुण निशा के बीच दिवस का बीता जाए पल|
कुछ लम्हे हैं प्रीत के तो कुछ में भरे हैं छल|
शिलालेख सदा कहता है कैसा रहा अतीत,
कुछ अवसाद होते हैं ऐसे वक्त ही जिनका हल|

२.
सुगंध अनूठे लेकर डलिया में ऋतुराज हैं आए|
कलियों ने ज्यूँ घूँघटा पट खोला श्याम अलि इतराए|
रंगों की छिटकन दे दे कर भरता है रूप  चितेरा
बौरा गई है कोयलिया जब से आम्रकुँज बौराए|

३.
इस जहाँ से जब हम नाता तोड़ जाएँगे|
इक नाम ही तो होगा जो छोड़ जाएँगे| 
रखते नहीं शिकवा या शिकायतें किसी से,
हो सके तो रुख तूफ़ाँ का मोड़ जाएँगे|

४.
फूलों की डोली ले आया है बहार देखो|

बागों में पतझर का हो रहा श्रृंगार देखो|

गुँथ हैं चहुँ ओर चम्पई गेंदों के पुष्प हार,

माँ शारदे का महका है वंदनवार देखो|

५.
खिल रही हैं वाटिका मे अनगिनत कलियाँ|

गूँजे  भँवरों के स्वर मँडरायी तितलियाँ|

खेत इतरा गए कर सरसो  संग विहार,

नव कोंपलें बन गईं धरती का श्रृंगार !

६.
किस्मत वालों को ही मिलती हैं उम्र की ढलान|
आधियों में अडिग ही करते इसको अपने नाम|
दिन बीता घर लौट चलो कहती है सांध्य की लाली,
हुलस हुलस गऊएँ हैं दौड़ीं  सूरज की किरणें थाम|

७.
सुबहो शाम कदमों गाड़ियों की रफ़्तार से|
थकी सड़क ये पूछती है बड़े मनुहार से|
पथिक, बता मेरी मंजिल कहीं है या नहीं,
या सदा बढ़ते रहेंगे कारवां कतार से|

८.
बिना ही भूल के उसने सजा पाई|
शिला बन ठोकरें भी राह में खाई|
अहिल्या को छले थे इन्द्र धोखे से,
वही क्यूँ शाप के फिर दंश में आई??
....................ऋता शेखर मधु

8 टिप्‍पणियां:

  1. किस्मत वालों को ही मिलती हैं उम्र की ढलान|
    आधियों में अडिग ही करते इसको अपने नाम|
    दिन बीता घर लौट चलो कहती है सांध्य की लाली,
    हुलस हुलस गऊएँ हैं दौड़ीं सूरज की किरणें थाम|

    बहुत खूब, सुन्दर !
    सादर आभार!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुंदर एवं तराशी हुई रचना !! शुभकामनायें !!

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  4. ३.
    इस जहाँ से जब हम नाता तोड़ जाएँगे|
    इक नाम ही तो होगा जो छोड़ जाएँगे|
    रखते नहीं शिकवा या शिकायतें किसी से,
    हो सके तो रुख तूफ़ाँ का मोड़ जाएँगे|
    sunder aapki lekhni voahi kaam kar rahi hai
    badhai
    bahan

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  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  6. अहा! कितनी सुन्दर कविता दीदी, आज बड़े दिनों बाद ब्लॉग पढ़ रहा हूँ मैं ! :)

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  7. बहुत ही गहन और सुन्दर हैं सभी .... खासकर पहला वाला तो बहुत पसंद आया |

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