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मंगलवार, 4 मार्च 2014

हम की महती भावना, मानव की पहचान

१.

मैं मैं मैं करते रहे, रखकर अहमी क्षोभ

स्वार्थ सिद्धि की कामना , भरती मन में लोभ

भरती मन में लोभ, शोध कर लीजे मन का

मिले ज्ञान सा रत्न, मान कर लें इस धन का

करम बने जब भाव, धरम बन जाता है मैं

जग की माया जान, परम बन जाता है मैं

२.

तुम ही मेरे राम हो, तुम ही हो घनश्याम

ओ मेरे अंतःकरण, तुम ही तीरथ धाम

तुम ही तीरथ धाम, भक्ति की राह दिखाते

बुझे अगर मन-ज्योत, हृदय में दीप जलाते

थक जाते जब पाँव, समीर बहाते हो तुम

पथ जाऊँ गर भूल, राह दिखलाते हो तुम

३.

हम की महती भावना, मानव की पहचान

हम ही विमल वितान है, तज दें यदि अभिमान

तज दें यदि अभिमान, बने यह पर उपकारी

दीन दुखी सब लोग सहज होवें बलिहारी

कड़ुवाहट को त्याग, मृदुल आलोकित है हम

अपनाकर बन्धुत्व, वृहद परिभाषित है हम

ऋता शेखर 'मधु'

9 टिप्‍पणियां:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन लक्ष्मी के साहस और जज़्बे को नमन - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (05-03-2014) को माते मत वाले मगर, नेता नातेदार-चर्चा मंच 1542 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मन को सुबह-सुबह शांत एवँ निर्मल करते बहुत ही शानदार छंद मधु जी ! बहुत-बहुत बधाई एवँ शुभकामनायें !

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  4. मन को सुबह-सुबह शांत व निर्मल करते बहुत ही सुंदर छंद ! आपको बहुत-बहुत बधाई एवँ शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं

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