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मंगलवार, 24 जून 2014

बंधन में स्वतंत्रता

उड़ते परिंदे ने पूछा-
'अरी पतंग
उन्मुक्त गगन में
इधर उधर विचरती
तू बहुत खुश है न'
'हाँ, बहुत खुश हूँ'



'मगर तूने देखा
तेरे में जो डोर बँधी है
वह बाधक है
तेरी स्वच्छंंदता में
डोर ही तय करती है
तुम्हारी दिशा, गति
और उड़ान की ऊँचाई भी'

हौले से मुस्कुराई
फिर बोली पतंग
'वह डोर है मेरे संस्कारों की
उनमें चमकता है मेरा सिन्दूर
खनकती हैं मेरी चूड़ियाँ
चहकती हैं किलकारियाँ
और मैं चाहती हूँ
वह डोर इतनी मँझी रहे
इतनी अकाट्य रहे
कि उड़ती फिरूँ मैं निर्भीक'
.
परिंदे, तुम क्या जानो
बंधन में स्वतंत्रता का सुख
...ऋता
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