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रविवार, 14 सितंबर 2014

काव्य का है प्यार हिन्दी


हिन्द का श्रृंगार हिन्दी
भाव का है सार हिन्दी

देव की नगरी से आई
ज्ञान का भंडार हिन्दी

लोकगीतों में बसी यह
है मधुर संसार हिन्दी

डाल पातें झूमती सी
गा रहीं मल्हार हिन्दी

छंद गजलों में महकती
काव्य का है प्यार हिन्दी

भाषणों संभाषणों में
मंच का आभार हिन्दी

बोलने की चाहते हैं
क्यों लगे फिर भार हिन्दी

बाँध देती एक सुर में
प्रांत को हर बार हिन्दी

गा रही सरगम बनी यह
है सफल उद्गार हिन्दी

शिल्प को जब गढ़ रही हो
तब लगे कुम्हार हिन्दी

साथ में उर्दू मिले तो
नज़्म का है हार हिन्दी

यह विदेशों में रमी है
सच बड़ी फ़नकार हिन्दी

मान्यता प्रतियोगिता में
कर रही उपकार हिन्दी

जा बसी हर गंध में यह
राज्य का उपहार हिन्दी
मूल संस्कृत में जमा के
है विटप विस्तार हिन्दी

विष्णु ऊँ ब्रम्हा विराजें
ईश का दरबार हिन्दी

लेखनी में जा बसी है
बन रही रसधार हिन्दी

भर रही है बाजुओं में
वीर का हुंकार हिन्दी

राह, माना है कँटीली
चल पड़ी साभार हिन्दी

शादियाँ त्योहार में भी
गूँजती सौ बार हिन्दी

अंग्रेजी जब से घुसी है
कर रही तकरार हिन्दी

जीत हासिल हम करेंगे
है विजय आसार हिन्दी

प्रेमियों की पात है ये
है मधुर इज़हार हिन्दी

शान से बोलें इसे तो
देश का उपहार हिन्दी

पीर इसकी भी सुनो तुम
माँगती अधिकार हिन्दी

अब विमानों में सजी है 
वक्त की रफ़्तार हिन्दी
*ऋता शेखर ‘मधु’*

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । हिंदी दिवस पर शुभकामनाऐं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. हिंदी का ये रसगान मुझे बहुत पसंद आया दीदी..:)

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे ख्याल से तुम्हारी रचनाओं को पाठ्य क्रम में रखना चाहिए, बच्चे सरलता से सही अर्थ सीखेंगे

    जवाब देंहटाएं
  4. हिंदी दिवस पर सार्थक प्रस्तुति
    दिवस विशेष की हार्दिक शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  5. हमारा है अधिकार हिंदी
    हमको है अभिमान हिंदी !

    जवाब देंहटाएं


  6. हिन्द का श्रृंगार हिन्दी
    भाव का है सार हिन्दी

    देव की नगरी से आई
    ज्ञान का भंडार हिन्दी

    लोकगीतों में बसी यह
    है मधुर संसार हिन्दी

    डाल पातें झूमती सी
    गा रहीं मल्हार हिन्दी

    छंद गजलों में महकती
    काव्य का है प्यार हिन्दी

    भाषणों संभाषणों में
    मंच का आभार हिन्दी

    बोलने की चाहते हैं
    क्यों लगे फिर भार हिन्दी

    बाँध देती एक सुर में
    प्रांत को हर बार हिन्दी

    गा रही सरगम बनी यह
    है सफल उद्गार हिन्दी

    शिल्प को जब गढ़ रही हो
    तब लगे कुम्हार हिन्दी

    साथ में उर्दू मिले तो
    नज़्म का है हार हिन्दी

    यह विदेशों में रमी है
    सच बड़ी फ़नकार हिन्दी

    मान्यता प्रतियोगिता में
    कर रही उपकार हिन्दी

    जा बसी हर गंध में यह
    राज्य का उपहार हिन्दी
    मूल संस्कृत में जमा के
    है विटप विस्तार हिन्दी

    विष्णु ऊँ ब्रम्हा विराजें
    ईश का दरबार हिन्दी

    लेखनी में जा बसी है
    बन रही रसधार हिन्दी

    भर रही है बाजुओं में
    वीर का हुंकार हिन्दी

    राह, माना है कँटीली
    चल पड़ी साभार हिन्दी

    शादियाँ त्योहार में भी
    गूँजती सौ बार हिन्दी

    अंग्रेजी जब से घुसी है
    कर रही तकरार हिन्दी

    जीत हासिल हम करेंगे
    है विजय आसार हिन्दी

    प्रेमियों की पात है ये
    है मधुर इज़हार हिन्दी

    शान से बोलें इसे तो
    देश का उपहार हिन्दी

    पीर इसकी भी सुनो तुम
    माँगती अधिकार हिन्दी
    अरे वाह ..... अक्षर - अक्षर भावमय हो उठा है
    बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने

    जवाब देंहटाएं

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