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रविवार, 21 दिसंबर 2014

भटकन - लघुकथा


भटकन-
''नेहा, आज शाम को मुकेश के यहाँ पार्टी है, उसकी बेटी का जन्मदिन है, तैयार रहना'',दफ्तर से पंकज ने फोन किया|
''मगर मैं कैसे जा पाऊँगी, माँजी घर में अकेली रह जाएँगी'',नेहा ने मद्धिम स्वर में कहा|
''तो फिर ठीक है, मैं ही चला जाऊँगा'', कहकर पंकज ने फोन काट दिया|
नेहा की सास चलने फिरने से लाचार थी| ऊच्च रक्तचाप एवं मधुमेह से पीड़ित थी| इस कारण उनपर हमेशा ही निगाह रखनी होती थी| नेहा एक समझदार बहु और पत्नी थी| सास की देखभाल में कोई कमी नहीं रखती| मगर इधर कुछ दिनों से उसे तब कोफ़्त होती जब वह उनके कारण कहीं जा नहीं पाती| उस वक्त वह खुद को बँधा ब़ँधा महसूस करती| इसके लिए विरोध के स्वर भी उठने लने लगे थे| पंकज भी चुप रह जाता| माँ को वह कहाँ भेजता| माँ से वह बहुत प्यार करता था और उनकी इज्जत करता था| पिता के गुजर जाने के बाद वही माँ का इकलौता सहारा था|

एक दिन नेहा ने कह दिया,’’अब मैं और बंधन में नहीं रह सकती, माँजी को वृद्धाश्रम छोड़ आओ’’|

पंकज नेहा की बात सुनकर अवाक रह गया| उसने कुछ नहीं कहा और घर से बाहर निकल गया|
दूसरे दिन उसने माँ को समझाकर वृद्धाश्रम जाने के लिए तैयार कर लिया| माँ थी न, घर की शांति के लिए दुखी मन से तैयार हो गई| नेहा ने भी कहा अवश्य था किन्तु उसका मन धिक्कार रहा था| फिर भी उसने सोचा कि एक बार दिल पर पत्थर रखकर यह हो गया तो वह आजाद हो जाएगी|
दूसरे दिन जब माँ घर से जाने वाली थीं तभी नेहा के मायके से फोन आया| नेहा के भाई ने कहा,’’नेहा, घर अाकर अपनी माँ से मिल लो, हम अभी माँ को लेकर वृद्धाश्रम जा रहे हैं’’|
नेहा को रोना ¨आ गया, ‘’क्यों भइया’’?
‘’तेरी भाभी अब बन्धन में नहीं रह सकती’’|
नेहा चुप रह गई| थके थके कदमों से वह सास के पास गई और रोने लगी|
‘’माँजी, मुझे माफ कर दें, आपको खोकर मैं भी मैं खुश नहीं रह सकती|’’
सास ने नेहा को गले से लगा लिया|
इधर फोन पर पंकज नेहा के भाई को धन्यवाद दे रहा था|
*ऋता शेखर 'मधु'*

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