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सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

सिलसिला आज तो जुड़ा कोई

2122 1212 22
काफ़िया-आ
रदीफ़-कोई

सिलसिला आज तो जुड़ा कोई
नफ़रतें छोड़ कर मिला कोई

आसरो से बँधा रहा जीवन
मोगरा डाल पर खिला कोई

नज़्म धड़कन बनी रही हरदम
ख्वाब ऐसा जगा गया कोई

देश मेरा सदा रहे कायम
फाँसियों में इसे लिखा कोई

मुल्क में चैन हो अमन भी हो
लाठियाँ भाँज कर कहा कोई

*ऋता शेखर 'मधु'*


1 टिप्पणी:

  1. आसरो से बँधा रहा जीवन
    मोगरा डाल पर खिला कोई

    नज़्म धड़कन बनी रही हरदम
    ख्वाब ऐसा जगा गया कोई
    बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

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