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सोमवार, 23 मई 2016

सौहार्द्र - लघुकथा

साझा अनुशासन- लघुकथा

उस शहर में मंदिर और मस्जिद अगल बगल थे| ईद में दोपहर एक बजे नमाजियों की कतार मंदिर के गेट तक आ जाती और रामनवमी में हनुमान जी को ध्वाजारोहण के लिए भक्तों की पंक्ति मस्जिद के सामने तक पहुँच जाती| 

इस बार प्रशासन को चिन्ता हो रही थी कि भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाएगा क्योंकि ईद और रामनवमी एक ही दिन थे और पूजा का मुहुर्त भी दोपहर बारह बजे से था| पुलिस अधिकारी सुरक्षा का इंन्तेजाम देखने वहाँ पर मौजूद थे| तभी अधिकारी ने देखा कि मंदिर के मुख्य पुजारी तथा मस्जिद के संचालक मौलवी जी एक साथ मुस्कुराते हुए सामने से आ रहे थे मानो कुछ निर्णय ले लिया था दोनों ने| 

सुबह से ही पुलिस की तैनाती थी| धीरे धीरे समय खिसकने लगा| भीड़ बढ़ रही थी| मंदिर के मुख्य द्वार पर पंडित जी खड़े थे और मस्जिद के द्वार पर मौलवी साहब| आँखों ही आँखों में दोनों की बातें हो रही थीं| बारह बजे से ध्वजा की पूजा आरम्भ हुई| पक्का पौने एक बजे पंडित जी मस्जिद के द्वार पर जा पहुँचे| उन्होंने भक्तों की पंक्ति को दो भागों में बाँटकर बीच में नमाजियों के लिए जगह बनाई| पूजा का काम आधे घंटे के लिए रोक दिया गया| शांतिपूर्ण माहौल में नमाज अता की गई| उसके बाद मौलवी साहब मंदिर के गेट पर गए और ईद मना रहे लोगों को शांति से हट जाने को कहा| प्रशासन इस सौहार्द्र को देखकर दोनों के सामने नतमस्तक हो गई|

----ऋता शेख ‘मधु’--------

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