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बुधवार, 27 जुलाई 2016

सुराख वाले छप्पर - लघुकथा

सुराख वाले छप्पर 

कॉल बेल बजते ही मिसेज तनेजा दरवाजे पर पहुँचीं| बगल के फ्लैट की नई पड़ोसन मिसेज भल्ला थीं| हाथ जोड़कर नमस्ते बोलते हुए मिसेज तनेजा ने उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया और हँस हँस कर बातें करने लगीं| सौम्य मिसेज भल्ला सिर्फ मुस्कुराकर थोड़े शब्दों में जवाब दे रही थीं|

“ पता है मिसेज भल्ला, सामने वाली मिसेज वर्मा ने अपनी सास को वृद्धाश्रम में छोड़ रखा है| पति पत्नी दोनों सुबह काम पर निकल जाते हैं| उनका कहना है कि वे सास को किसपर छोड़ें| किसी कामवाली पर छोड़ने से अच्छा है वृद्धाश्रम में रखना| ये कोई बात हुई भला, क्या जमाना आ गया है”, मिसेज तनेजा बोले जा रही थीं|
मिसेज भल्ला ने धीरे धीरे कहना शुरु किया|

” मेरी सास नहीं हैं| मेरा छोटा सा बेटा दोस्तों से सुन सुन कर दादी को देखना चाहता था| कल मैं उसे वृद्धाश्रम लेकर गई| मेरे साथ मिसेज वर्मा भी थीं| उन्होंने सास के लिए बहुत सारा सामान ले रखा था| वृद्ध महिलाओं ने बेटे से खूब लाड़ लगाया| वहीं बिस्तर पर पड़ी एक वृद्धा ने बताया कि उनकी बहु घर में रहती है फिर भी मैं यहाँ रहती हूँ| मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वह हमेशा खुश रहे जिससे मेरा बेटा और पोता खुश रहें| उनके हाथों में एक फोटो ले रखा था जो वह था| ’’ शो केस में लगे मिसेज तनेजा के परिवार की फोटो की ओर इशारा किया मिसेज भल्ला ने|

मिसेज तनेजा के पीले पड़ते चेहरे को देखकर मिसेज भल्ला चुपचाप बाहर निकल गईं|

--ऋता शेखर ‘मधु’

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