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बुधवार, 10 अगस्त 2016

तुम जिन्दा हो - लघुकथा

 तुम जिन्दा हो 

आइने के सामने खड़ा होकर वह सोच रहा था, 

“वो कौन सी शक्ति थी जो बार बार उससे कह रही थी - कूद जाओ, तुम्हारी किसी को जरूरत नहीं|”

सेन फांसिसको के गोल्डन ब्रिज से वह प्रायः गुजरता था फिर उस दिन उसके मन में यह बात क्यों आई| क्या वाकई सागर की लहरों ने उसे बुलाया या वह मात्र वहम् था| प्यार में धोखा खाने के बाद खुद को खत्म कर लेने का विचार ही तो उन लहरों से नहीं गूँज रहा था|

“जिन्दगी से भागने वाले कायर होते हैं,” दृढ़तापूर्वक दोस्तों के बीच यह कहने वाला खुद जिन्दगी से भाग खड़ा होने को तैयार था|"

यह कुदरत का करिश्मा ही था कि उस दिन ब्रिज से बीच महासागर में छलांग लगाने के बाद वह सी- लायन की पीठ पर अटक गया था| बचाव दस्ता की नजर पड़ी और उसे बचा लिया गया|

आज आइने का अक्स कह रहा था, “जिन्दगी को तुम्हारी जरूरत थी इसलिए तुम जिन्दा हो| पर कायर भी हो, इसे स्वीकार कर लो|”

“ हाँ, हाँ मैं कायर हूँ और वह निर्णय मेरी सबसे बड़ी भूल थी,” उसका दिल चीख चीख कर कह रहा था|

--ऋता शेखर ‘मधु’

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