“अरे ओ रामू, उठ रे, उत्तर से पानी बढ़ता ही जा रहा है| हमारी
मकई खराब हो जाएगी रे| अब का होगा”
“चिन्ता ना कर कलुआ, जो भगवान पेट दिया है वोही अनाज भी देगा|”
“भगवान का करेगा| बाढ़ लाकर वोही तो तबाह करता है| हमरे माई
बापू मेहरारु लइका सब का खाएँगे| चल, जो बोरी शहर भेजे खातिर रखे हैं वोही निकालते
हैं| वैसे भी भीगी बोरी किस काम की|”
रामू और कलुआ ने बोरी खोली|थोड़ी सड़ाँध आ चुकी थी| कलुआ ने वही
चावल पकाने के लिए ले लिया|
“ना रे कलुआ, हम तो इसका भात नाहिं खाएँगे|”
“तब इ का शहर वाले खाएँगे| वहाँ तो सब अच्छा अच्छा जाएगा| हमारा
पेट सब पचा लेता है रे रामू|”
--ऋता
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-10-2016) के चर्चा मंच "करवा चौथ की फिर राम-राम" {चर्चा अंक- 2502} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'