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बुधवार, 23 नवंबर 2016

अंतर्देशीय



अंतर्देशीय--

इमेल, एसएमएस, व्हाट्स एप के जमाने में ऑफिस के लिफाफों के ढेर में एक अन्तर्देशीय देखकर अविनाश चौंक गया| लिखने वाले ने अन्तर्देशीय के पीछे अपना नाम नहीं लिखा था| उत्सुकता से अविनाश ने सबसे पहले वही खोला|

''सॉरी भइया, तुमसे बात करने का कोई रास्ता नहीं था| इसलिए यह खत लिखा|
याद है बचपन में हम कितना लड़ा करते थे| मैं ही ज्यादा बदमाश थी और तुम हमेशा चुप लगाकर झगड़ा शात कर देते थे| तुम्हें याद है न, होमवर्क नहीं करने पर मैं स्कूल न जाने के कई बहाने ढूँढती थी और तुम चुपके से मेरा होमवर्क पूरा कर दिया करते थे| भाई, तुम्हें याद है एक बार कॉलेज से जाने वाले एजुकेश्नल ट्रिप पर जाने देने के लिए पापा राजी नहीं थे तब तुमने ही तो मेरी सिफारिश की थी और पापा तैयार हो गए थे| एक बार एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए सैंड कलर नहीं मिल रहा था तो तुमने कई दुकानों के चक्कर लगाए थे और लाकर दिए थे|
माना कि तुम्हें बहुत आगे तक जाने की महत्वाकांक्षा थी| एम बी बी एस के बाद आगे की पढ़ाई विदेश में पढ़ना चाहते थे तुम| इसके लिए तुमने भाभी के पापा के दबाव में आकर उनके घर में ही रहना स्वीकार कर लिया| हमें या मम्मी पापा को इससे कोई एतराज नहीं था लेकिन तुम धीरे धीरे हमसे दूर होते चले गए| मैं चाह कर भी तुमसे बात नहीं कर पा रही थी| मुझे मालूम था कि तुम्हारे फोन, मेल सब कुछ भाभी देखती हैं इसलिए कोई बात न बढ़ जाए मैंने भी दूरी बना ली थी|
भइया, मेरे इंगेजमेंट में भी तुम मेहमान बन कर आए और चले गए| अब मैं भी तो घर से जा रही हूँ| लोग कहते हैं कि बेटियाँ परायी होती हैं| तुम तो बेटा हो न| मम्मी पापा बिल्कुल टूट जाएँगे भाई|
भइया, दूसरे घर जाने से पहले मैं तुम्हें अपने हाथों से वो सभी राखियाँ बाँधना चाहती हूँ जिसे हर रक्षाबंधन पर मैंने खरीदे पर तुम्हारे पास जाने की हिम्मत न कर सकी| मुझे एक दिन के लिए मेरा भाई लौटा दो भइया| फिर आगे कुछ नहीं माँगूँगी | भइया प्लीज़, आशा है बचपन की प्यारी बहन का मान रख लोगे|
अनु
आँखें पोंछते हुए अविनाश टेबल पर पड़े सभी कागजों को समेट उठ गया|
''सर, आज की डील फाइनल नहीं हुई तो देर हो जाएगी| "
'' अगर आज नहीं गया तो मेरी बहन खो जाएगी'', कहता हुआ अविनाश बाहर निकल गया|
--ऋता शेखर 'मधु'

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