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मंगलवार, 16 मई 2017

डील-लघुकथा

डील

कॉफी कैफे में बैठे मोहित और अनन्या औपचारिक बातचीत कर रहे थे। दोनों ही अच्छे पैकेज वाले मल्टी नेशनल कम्पनी में कार्यरत थे। शादी डॉट कॉम वाली साइट से दोनों परिवारों ने अपनी सहमति दी थी।चूँकि दोनों एक ही शहर में कार्यरत थे इसलिए अपने अभिभावकों की अनुमति से एक दूसरे को देखने और मिलने आये थे।

कॉरपोरेट स्टाइल में दोनों की बातें इस तरह से चल रही थीं जैसे कोई डील पक्की कर रहे हों।

"मोहित, आप खाना तो बना लेते होंगे।"

"बिलकुल बना लेता हूँ। "

"तो वीक में तीन दिन मैं और तीन दिन आप किचेन देख लेंगे"

" मैं पूरे वीक देख लूँगा।"

"सच ! बाहर से सामान कौन लाएगा।"

"मैं हूँ न", मोहित ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छा, शॉपिंग भी करवाएंगे।"

"वीकेंड में शॉपिंग भी और खाना भी बाहर खाएंगे।"

"एक बात और मोहित, आपके पैरेंट्स हमारे साथ ही रहेंगे क्या।"

माता पिता का एकमात्र पुत्र मोहित यह सुनकर मन ही मन आहत हुआ किन्तु बात सँभालते हुए बोला-

"जैसा तुम चाहोगी"

"मैं नहीं चाहती कि हमारी आजादी में कोई खलल हो।रोक टोक बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी।"

"ओके, फिर मैं अपने पेरेंट्स को नहीं रखूँगा "

अनन्या का चेहरा ख़ुशी से खिल गया।

"अनन्या, तुम्हारी सारी डील मुझे स्वीकार है। एक बात मेरी भी मान लो।"

"जी, बोलिये।"

"तुम्हे भी अपने पेरेंट्स के आने पर पाबन्दी लगानी होगी। मेरी यह बात मान्य है तो फिर रिश्ता पक्का समझो।"

मोहित गंभीरता से बोला।

"मोहित, पेरेंट्स वाली डील कैंसिल कर देते है।" अनन्या के चेहरे के बदलते भाव मोहित महसूस कर रहा था।

"ऐज यू विश" कहते हुए विजयी मुस्कान मोहित के चेहरे पर फ़ैल गई।

-ऋता शेखर 'मधु'

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! आजकल विवाह भी डील बनकर रह गये हैं..नई पीढ़ी बहुत प्रैक्टिकल है

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’अफवाहों के मकड़जाल में न फँसें, ब्लॉग बुलेटिन पढ़ें’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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