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रविवार, 18 जून 2017

प्रतिबिम्ब--कुछ भाव कुछ क्षणिकाएँ

बँधे हाथ

अपने वतन के वास्ते
गुलमोहर सा प्यार तुम्हारा
अनुशासन के कदम ताल पर
केसरिया श्रृंगार तुम्हारा
 

पत्थर बाजों की बस्ती में
जीना है दुश्वार तुम्हारा
चोट सहो तुम सीने पर
पर कचनारी हो वार तुम्हारा

हा! कैसा है सन्देश देश का
चुप रहकर शोले पी लेना
उन आतंकी की खातिर तुम
अपमानित होकर जी लेना।

अच्छी नहीं सहिष्णुता इतनी भी
रामलला को याद करो
कोमल मन की बगिया में
कंटक वन आबाद करो
-ऋता
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बुद्धत्व

मंजिल पर शून्य है
रे मन, सफ़र में ही रहा कर

संसार में
रोग क्यों है
शोक क्यों है
बुढ़ापा क्यों है
मृत्यु क्यों है
इस शाश्वत सत्य की खोज में
सिद्धार्थ को बुद्धत्व प्राप्त हुआ।
क्यों है...इसका उत्तर सहज नहीं
और यदि ये सब है ही
तो सहज स्वीकार्यता ही
संसार में बुद्धत्व पाने का सरल मार्ग है
ये मार्ग सरल होते हुए भी सहज नहीं
जीवन में हर मनुष्य इनकी खोज में है
मन का बूद्ध हो जाना भी
शाश्वत सत्य है।
-ऋता

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प्रतिबिम्ब
 
सागर भी है
तलैया भी
गगन का प्रतिबिम्ब
दोनों में समाया
अशांत लहरो में
गगन भी अशांत सा
तलैये के मौन में
महफूज़ चाँद सितारे
-ऋता
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एक सवाल

मनु,
तू कौन है, क्या है?
एक आकार
एक आत्मा
एक भाव
एक सोच
एक मन
एक यात्री
एक रास्ता
एक मंजिल
एक नागरिक
एक धर्म
एक मानवता
एक मोह
एक त्याग
एक अभिलाषा
एक लिप्सा
एक क्रोध
एक भाषा
एक जनक
एक सार
एक तत्व
एक प्रेम
एक विरह
एक भोग
एक विलास
एक क्रिया
एक प्रक्रिया
एक प्रशंसा
एक आलोचना
एक सत्यवादी
एक चापलूस
एक वक्ता
एक श्रोता
एक अभिव्यक्ति
एक पीर
एक हास्य
एक गंभीर

मनु: सुन ले
तू एक व्यक्तित्व हूँ
उपरोक्त सारे गुणों से लबरेज
प्रभु की अनुपम कृति है।

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उम्मीदें

उम्मीदें तो बीज हैं
उनकी अवस्था
सुसुप्त नहीं होती
बार बार अंकुरण
बार बार आघात
फिर भी कोंपल
झाँकने को आतुर
मुरझाने का सिलसिला
जाने कब तक चले
अंकुरण की प्रक्रिया
जारी रहती है
अनवरत
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 ये जरूरी नहीं कि हमारे शुभचिंतक सिर्फ हमारे अपने रिश्तेदार या मित्र ही हों...कई शुभचिंतक वो भी होते है जो राह चलते मिल जाते है...
जैसे जब आप ट्रेन में हो और गंतव्य के पास से गाडी धीरे धीरे गुजर रही हो तब उतरने की चेष्टा करते हुए किसी का टोक देना...
जब फ्लाइट में थोड़े हेवी सामन के साथ आप अकेले हों तब किसी का हाथ बढाकर आपका बैग उतार देना...
जब आप बेध्यानी में पटरी क्रॉस करके प्लेटफॉर्म पर आते हुए उधर से आ रही ट्रेन न देख पाएं हो तो पब्लिक का एक साथ चिल्ला देना...
जब आधे किलोमीटर की दूरी तय करवाकर ऑटो वाले का पैसा न लेना...
और भी बहुत कुछ जो याद रह जाता है और उन अजनबियों को मन बार बार धन्यवाद के साथ दुआएँ भी देता है। यदि आप किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ाते है तो बदले में बहुत कुछ अर्जित कर लेते है।

आज उन सभी को धन्यवाद।

 


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-06-2017) को
    "पिता जैसा कोई नहीं" (चर्चा अंक-2647)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. भावपूर्ण और प्रभावी कवितायें

    जवाब देंहटाएं

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