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बुधवार, 2 अगस्त 2017

सोचो अम्मा-लघुकथा


''बेटे, सौरभ की शादी की बात कहीं पक्की हुई?'' फोन पर रमोला जी ने बेटे मनोज से यह बात पूछी|

सौरभ रमोला जी का पोता था और मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता था| सरल सहज सौरभ ने कभी किसी लड़की की ओर आँख उठाकर नहीं देखा, इसलिए प्रेम विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता था| अरेंज्ड मैरिज में उसकी शर्त थी कि लड़की भी कामकाजी चाहिए थी|

''नहीं माँ, अभी नहीं| तीन जगहों पर बात आगे बढ़ी, दोनो मिले फिर लड़की ने इन्कार कर दिया|''

''क्यों, क्या कमी है हमारे सौरभ मे," रमोला जी ने आहत स्वर में पूछा|

''उसका श्यामल वर्ण'' मनोज जी ने बताया|

''उफ, लड़कियों की हिम्मत तो देखो| लड़के की सीरत देखी जाती है सूरत नहीं| ,'' माँ को यह बात हजम नहीं हुई|

सारी बातें स्पीकर पर हो रही थीं और रमोला जी की बेटी सृष्टि भी सुन रही थी|

''अब लड़कियाँ आत्मनिर्भर हो चुकी हैं| उन्हें भी निर्णय का अधिकार मिल चुका है| अब सोचो अम्मा , मनोज भैया के लिए लड़की देखने के समय आपने भी कई सर्वगुणसंपन्न लड़कियों को साँवले होने की वजह से छोड़ दिया था|''

सोचती हुई माँ को छोड़कर सृष्टि दूसरे काम निपटाने चली गई थी|
--ऋता शेखर 'मधु'

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