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गुरुवार, 17 अगस्त 2017

हमारी दोस्ती-लघुकथा

हमारी दोस्ती

''अर्णव, एक महीने से ऊपर हो गया यहाँ आए हुए,'' पिता ने आखिरकार इकलौते पुत्र को टोक ही दिया|
''तो'' अर्णव ने थोड़ी लापरवाही से कहा|
''अपना रेज्युमें सभी जगह भेज तो रहे हो न''
''नहीं'' फिर से उसका संक्षिप्त जवाब आया|
''एग्रीकल्चर साइंस की पढ़ाई विदेश से पूरी करने के बाद यहाँ रहने का मतलब''अब पिता की आवाज में थोड़ी खीझ भरी हुई थी|

गाँव की पगडंडी पर तीन पीढ़ियाँ एक साथ चल रही थीं|पिता- पुत्र के संवाद के दौरान दादा जी चुप थे|खेत आ चुका था और धान के नन्हें नन्हें पौधे हवा के साथ अठखेलियाँ कर रहे थे| अर्णव ने हरियालियों के बीच अपना चार्जर खोंस दिया|

''ये क्या है बेटे'' अब दादा जी बोले|

''दोस्ती, एग्रीकल्चर की दोस्ती आधुनिक तकनीक के साथ| ये दोनों ही ऊर्जा के स्रोत हैं| मैंने विदेश से एग्रीकल्चर साइंस की पढ़ाई की है और उसका उपयोग अपने देश में करना चाहता हूँ दादा जी| आप अब बूढ़े हो गए हैं| इन खेतों का विस्तार नहीं संभाल पाएँगे| इसे मैं सम्भालता हूँ और आप गैजेट्स संभाल लीजिए|''
''मतलब'', पलकें झपकाते हुए दादा जी बोले|
''मतलब दादा जी, आप व्हाट्स एप और फेसबुक चलाना सीख लीजिए, मैं खेती करना सीखता हूँ| जहाँ भी हम अटकेंगे, एक दूसरे की मदद करेंगे पक्के दोस्त की तरह,'' चुहल भरे अंदाज में अर्णव ने कहा|
दो कलों का सामंजस्य देखकर पिता की आँखें छलछला गईं|
-ऋता शेखर 'मधु'

4 टिप्‍पणियां:

  1. दिनांक 18/08/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

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  2. सही कहा पोते ने , बहुत सुन्दर कथा

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  3. सच,युवा पीढ़ी की यही सोच होनी चाहिए ।

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