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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

धुँधली आँख-लघुकथा

धुँधली आँख

चारो तरफ ॐ कृष्णाय नमः की भक्तिमय धूम मची हुई थी। देवलोक में बैठे कृष्ण इस कोशिश में लगे थे कि किसी की पुकार अनसुनी न रह जाये। कृष्ण के बगल में बैठे सुदामा मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
" रहस्यमयी मुस्कान तो हमारे अधरों पर विराजमान रहती है मित्र, आज आपने क्यों यह मुस्कान धारण किया है?"
"कुछ नहीं मित्र, आज मेरा मन हो रहा कि मैं भी धरती पर जाऊँ और आपकी महिमा देखूँ।"


" तो देर किस बात की प्रिय सुदामा, चलिये"

धरती पर पहुँचकर कृष्ण , कृष्ण ही बने रहे किन्तु सुदामा ने खुद का अवतरण इस प्रकार किया कि वे जहाँ जायें, उस घर के मालिक के दोस्त के रूप में दिखें।

धरती शंखध्वनि से गुंजायमान थी। दीपकों ने अपनी लौ स्थिर रखा था क्योंकि दीये में घी प्रचूर मात्रा में था।कृष्ण के बालरूप की सज्जा का तो कहना ही क्या था।कृष्ण-राधा का भी अद्भुत श्रृंगार था। कृष्ण के भोग की जितनी गिनती की जाए वह कम ही होनी थी।

कृष्ण सुदामा एक घर के सामने रुक गए। कृष्ण को भी मसखरी सूझी। उन्होंने बालक का रूप धारण कर लिया।

"कोई है, कोई है" सुदामा ने आवाज लगाई।

अन्दर से गृहस्वामी निकले जिनकी रईसी उनकी साजसज्जा बता रही थी।

"क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो। कान्हा की आरती का समय हो गया है भाई, अभी वापस जाओ।"

"मेरा बच्चा कई दिनों से भूखा है, कुछ खाने को दीजिये।" खुले दरवाजे से माखन, दही की हांडी देखते हुए सुदामा ने कहा।

"अभी क्या दूँ, सब कुछ भोग में चढ़ा हुआ है"

"मित्र, मैं राघव हूँ, मैं तो तुम्हें देखते ही पहचान लिया था।मैं चाहता था कि तुम मुझे स्वयं पहचानो। अभी मेरी माली हालत ठीक नहीं, बच्चा भूखा है।" सुदामा ने विनीत भाव से कहा।

गृहस्वामी की आंखों में क्षण भर की पहचान उभरी।
" पर मैं नहीं पहचान पा रहा। क्या मेरे वैभव से आकर्षित होकर आए हो।"

"नहीं,धरती पर शोर मचा है कि कृष्ण भाव के भूखे हैं। हम अपनी वही भूख मिटाने आये थे।" कृष्ण सुदामा ने असली रूप धारण कर गृहस्वामी को अचंभित कर दिया।

"मित्र कृष्ण, जो भी आपके नाम की टेर लगा रहे उनमें कितनों ने आपके सद्गुणों को अपनाया है, बस यही दिखाना था। जो जीते जागते बाल गोपाल को धुँधली आँखों से देख रहे वे आपका अनुकरण कैसे कर पाएँगे।"

रहस्यमयी मुस्कान अब भी सुदामा के अधरों पर थिरक रही थी।

--ऋता शेखर 'मधु'

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