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गुरुवार, 2 जनवरी 2020

वक़्त-- कविता

वक़्त
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ये वक़्त भी क्या शय है

कितना कुछ समेटती

कितना कुछ बिखेरती

जाने कितने वादे किए

सपनों की टेकरी में

जाने क्या क्या इरादे दिए

कहीं झंझावात देती

कहीं खुशियों को मात देती

वो मरज़ी रही उसी की

कुछ सुनहरे कुछ रुपहले

मित्रों से मुलाकात देती

इतिहास भी उसी से है

कई राज भी उसी में है

परत दर परत न उधेरो उसे

उसकी अपनी रफ़्तार है

कहीं मीठी कहीं खार है

कहीं किनारा या मझधार है

जरूरत है कि हमसब

उसी रफ़्तार में बढ़े चलें

हर पल बीतना ही है

हर दिन सूरज भी आएगा

इस सच के साथ

हम अंधेरों से न डरें

हम हारकर भी न रुकें

कहीं तो होगी ही

कालीन फूलों की

कदम उधर बढ़ते चलें

ये वक़्त है, वो वक़्त है

हर वक़्त की अपनी कहानी

कहीं लिखी गयी

कहीं है जबानी

वक़्त में सब कुछ समाया

कर्मों की पोटली हो

लगन की हो सजावट

शालीनता हो साथ

न जुबाँ में हो गिरावट

देखो ,सुनो

आने लगी है चौखटों पर

उमंगों की तेज आहट

----- ऋता शेखर 'मधु'

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 दिसंबर 2021 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बेहतरीन रचना।
    हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी
    मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी
    ----
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वक्त का फलसफा गहनता से समझाया आपने।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. ये वक़्त है, वो वक़्त है

    हर वक़्त की अपनी कहानी

    कहीं लिखी गयी

    कहीं है जबानी
    वाह!!!!
    बहुत ही वक्त पर वक्त को वक्त के हिसाब से वयां किया है आपने...
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. समय की ताकत सबसे बड़ी | सार्थक अभिव्यक्ति |

    जवाब देंहटाएं
  6. वक्त से दिन
    और वक्त से रात
    कौन जाने किस समय
    वक्त ने बदला मिजाज
    आभार..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं

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