ओ मधुरमास आओ ढूँढने चलें प्यारे बसंत को पवन सुहानी मन भायी मिली नहीं फूलों की बगिया स्वर कोयल के कर्ण बसे छुपी रही खटमिट्ठी अमिया यादों के पट खोल सखे ले उतार खुशियाँ अनंत को ओ कृष्ण-रास ता-थइया करवाओ नर्तक बसंत को मन देहरी पर जा सजी भरी अँजुरी प्रीत रंगोली मिलन विरह की तान लिए प्रिय गीत में बसी है होली कह सरसों से ले आएँ तप में बैठे पीत संत को ओ फाग- मास सुर-सरित में बहाओ गायक बसंत को अँगना में जब दीप जले पायल छनकाती भोर जगे हँसी पाश में लिपट गयी बोल भी बने हैं प्रेम पगे कँगन परदे की ओट से पुकार उठी है प्रिय कंत को ओ नेह- आस चतुर्दिक सुषमा भरो प्रेमिल बसंत को न तो बैर की झाड़ बढ़े न नागफनी के अहाते हों टपके छत रामदीन की दूजे कर उसको छाते हों रोप बीज सुविचारों के करो सुवासित दिग्दिगंत को ओ आम- खास भरपूर रस से भरो मीठे बसंत को ऋता शेखर 'मधु' यह रचना ख्यातिप्राप्त ई-पत्रिका अनुभूति पर प्रकाशित है| यहाँ क्लिक करें |
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आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
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बहुत ही लाजवाब सृजन...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
वाह।
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