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बुधवार, 25 नवंबर 2020

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ

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१.

आँधियाँ चलीं

दो पँखुरी गुलाब की

बिखर गईं टूटकर

मन पूरे गुलाब की जगह

उन पँखुरियों पर 

अटका रहा|

2

रेगिस्तान में

आँधियों ने मस्ती की

रेत से भर गई थीं आँखें

आँखों पर 

होने चाहिये थे

चश्मे


3

हवा स्थिर थी

जब रौशन किया था 

एक दीया

मचल गई ईर्ष्यालु आँधी

और 

लौ को हाथों की ओट

दे दिया हमने 

--ऋता

14 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन भाव संजोये उत्कृष्ट श्रेणी की क्षणिकाएं। आनन्द की इस अनुभूति को व्यक्त करना संभव नहीं। मन उसी गुलाब की टूटी पंखुड़ियों पर अटक कर रह गया है।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया। ॠता जी।।।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ. साथ में चित्र हाइगा की याद दिला रहे हैं. बहुत बधाई.

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  4. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 27-11-2020) को "लहरों के साथ रहे कोई ।" (चर्चा अंक- 3898) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

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  5. आपकी टिप्पणी मंज़ूरी के बाद दिखने लगेगी ????????? :(

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  6. हवा स्थिर थी

    जब रौशन किया था

    एक दीया

    मचल गई ईर्ष्यालु आँधी

    और

    लौ को हाथों की ओट

    दे दिया हमने - - नाज़ुक भावनाओं से प्रस्फुटित क्षणिकाएं मन्त्रमुग्ध करती हैं - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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