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मंगलवार, 7 जून 2022

छंद विजात में परमपिता

छंद - विजात
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मात्रा विधान - १२२२ १२२२ , १४ मात्रिक सम छंद
चरण-४, चरणारंभ-१ लघु
चरणान्त-२२२(तीन गुरु)
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जिसे संसार ने जाना | 
जिसे संसार ने माना ||
सभी में जो समाया है | 
न नश्वर है न काया है ||१


उसी से आस मिलती है | 
उसी से श्वास खिलती है ||
जहाँ कण -कण लुभाया है| 
समझ लो ईश आया है||२

जहाँ विश्वास मिलते हैं |
वहाँ पर फूल खिलते हैं ||
लगाकर आस का चंदन| 
करें हम ईश का वंदन ||३

नदी की धार में बहते | 
किनारे दूर ही रहते ||
मिले उनका सहारा जब | 
जहां में कौन हारा कब ||४

धरा की हर फसल कहती | 
कृपा उनकी बनी रहती ||
तभी पावस बरसते हैं | 
तभी तो पेट भरते हैं ||५

दिवस भर सूर्य चलता है| 
निशा में चाँद ढलता है ||
इशारों पर हिलीं पातें| 
कहें सब ईश की बातें ||६

अमन को ध्यान में धरती | 
खुदा से कामना करती ||
दिलों में हों मुहब्बत भी | 
रक़ीबों पर मुरव्वत भी ||७

रहें सब साथ मिलजुल कर | 
चमन में गुल हँसें खुलकर ||
पवन जब चले बहारों में| 
नयन रीझे नजारों में ||८

– ऋता शेखर ‘मधु’

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर। जय श्रीराम।

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  2. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साहजनक है, बहुत धन्यवाद अनुपमा जी |

      हटाएं
  3. एम.एस.सी बॉटनी के बाद छंद का विस्‍तृत वर्णन...अदद्वभुत है मधु जी ये कॉम्‍बीनेशन...वाह क्‍या खूब लिखा है कि-

    जहाँ विश्वास मिलते हैं |
    वहाँ पर फूल खिलते हैं ||
    लगाकर आस का चंदन|
    करें हम ईश का वंदन

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