विषय- नटराज
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1
चोल वंश ने कांस्य से, सृजित किया नवरूप।
तांडव मुद्रा में ढले, शिवजी लगे अनूप।।
चोल वंश ने कांस्य से, सृजित किया नवरूप।
तांडव मुद्रा में ढले, शिवजी लगे अनूप।।
2
शिव नर्तक के रूप में, कहलाये नटराज।
बस एक बार प्रेम से, दें उनको आवाज।
3
नृत्य करें नटराज जब, स्पंदित हो आकाश।
महायोगी महेश वह, उनसे है कैलाश।।
4
नटराजन के नृत्य से, कण कण भरे प्रमोद।
जग सारा गतिशील है, डमरू करे विनोद ।।
5
घूम रहे ब्रह्मांड में, नीलकंठ नटराज।
अंतरिक्ष की ओम ध्वनि, खोल रही यह राज।।
6
शर्व: हरो मृडो शिवः, या कह लें नटराज।
एक नाम है तारकः, डमरू जिनका साज़।।
7
शिव वेदांगों शाश्वतः, उनकी कृपा अपार ।
करने जग-कल्याण वह, आते बारम्बार ।।
शिव नर्तक के रूप में, कहलाये नटराज।
बस एक बार प्रेम से, दें उनको आवाज।
3
नृत्य करें नटराज जब, स्पंदित हो आकाश।
महायोगी महेश वह, उनसे है कैलाश।।
4
नटराजन के नृत्य से, कण कण भरे प्रमोद।
जग सारा गतिशील है, डमरू करे विनोद ।।
5
घूम रहे ब्रह्मांड में, नीलकंठ नटराज।
अंतरिक्ष की ओम ध्वनि, खोल रही यह राज।।
6
शर्व: हरो मृडो शिवः, या कह लें नटराज।
एक नाम है तारकः, डमरू जिनका साज़।।
7
शिव वेदांगों शाश्वतः, उनकी कृपा अपार ।
करने जग-कल्याण वह, आते बारम्बार ।।
8
चार भुजाओं से सजे, कदम उठे ज्यों ताल |
हर मुद्रा को सीखकर, नर्तक हैं मालामाल||
9
प्रीत भरा संसार हो, सद्भावी हो ठाँव |
बौनारूपी द्वेष पर, थिरके शिव के पाँव ||
10
एक हाथ में दिख रहा, डमरू जैसा साज|
दूजे से जग को अभय, देते हैं नटराज ||
11
अनल घेर में हैं घिरे, लेकर ऊर्जा स्रोत |
आभामंडित शिव धरे,नृत्य पक्ष प्रद्योत||( नृत्य की एक मुद्रा)
@ऋता शेखर 'मधु'
वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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