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शनिवार, 19 नवंबर 2011

दिल की आवाज़


मेरी माँ एक सक्रिय ,सहृदय और कर्मठ शिक्षिका थीं| अपने स्नेहशील स्वभाव के कारण वह छात्राओं के बीच बहुत लोकप्रिय थीं|संयुक्त परिवार में रहकर घर और बाहर में सामंजस्य बैठाते हुए जिस सक्रियता और सहनशीलता का परिचय वे देती रहीं वह बहुत प्रसंशनीय था| अब उनके वृद्धाजनित अशक्त हो रहे शरीर को देखकर हमें बहुत तकलीफ़ होती है|उनकी स्थिति मेरे दिल की आवाज़ बनकर कलमबद्ध हो गई|







दिल की आवाज़
अशक्त शरीर
कमज़ोर नजर
जीवन से हारी
वृद्धा माँ हमारी|

जीवन-संघर्ष से थकी
इस जहाँ को त्याग
उस जहाँ में
जाने को बेताब
वृद्धा माँ हमारी|

कभी व्यक्त करती उद्‌गार
मैं अब हो गई बेकार
आत्मा को मुक्त करना है
चोला मुझे बदलना है,
हो गई है निर्विकार
वृद्धा माँ हमारी|

हम उनकी सन्तान
सब समझ कर भी
बन जाते अनजान
दिल से निकलती रुआँसी आवाज़
माँ सा प्यारा कोई नहीं
वृद्ध हो तो क्या हुआ
तुम अभी भी नही हो बेकार
अनुभवों का हो खज़ाना
जीवन के इस मोड़ पर भी
तुम्हें हमें है सजाना|

जीवन रथ
मंजिल पर आकर
ठहर चुकाहै|
सिर्फ़ प्रस्थान शेष है|
जाना न माँ
इतनी जल्दी भी क्या है| 

ऋता शेखर मधु 


16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण माँ के लिए लिखी ये रचना दिल को छु गया ! माँ को मेरा प्रणाम ईश्वर इन्हें स्वस्थ जीवन और लम्बी उम्र दे मेरी यही कामना है !
    फिलहाल मेरी माँ भी छठ पूजा के बाद काफी बीमार चल रही है !
    आँखें नम कर गई ये रचना !
    मेरी नई पोस्ट के लिए पधारे !

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  2. बहुत भावपूर्ण और संवेदनशील रचना ... दिल से निकली दिल की आवाज़

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  3. जीवन रथ
    मंजिल पर आकर
    ठहर चुकाहै|
    सिर्फ़ प्रस्थान शेष है|... saty se hum kitni bhi aankhen churayen ...maa ka haath pakad le .... jana to hai hi

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  4. आपके दिल की आवाज़ दिल तक पहुँचती है...!
    माँ का हाथ सदा बना रहे आपके सर पर!

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  5. वृद्ध माँ की स्थिति का बिल्कुल सटीक चित्रण किया है मेरी माँ भी इसी हाल मे हैं।

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  6. सुंदर मन एवं दिल की सुंदर परिचय प्रस्तुति ! मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  7. जीवन रथ
    मंजिल पर आकर
    ठहर चुकाहै|
    सिर्फ़ प्रस्थान शेष है|
    जाना न माँ
    इतनी जल्दी भी क्या है|

    ....बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण...माँ चाहे कितनी भी वृद्ध हों, उनका साथ छूटने को मन कभी स्वीकार नहीं कर पाता...उनका हाथ सर पर सदैव बना रहे...

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  8. दिल को छू गई हर एक शब्द! भावपूर्ण रचना!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  9. बहुत मार्मिक कविता है। वृद्धावस्था सारी शक्तियाँ छीन लेती है । हम माता-पिता की जितनी सेवा कर सकें , कम है। शिक्षिका तो वैसी ही जीवनभर ममता और ज्ञान बाँटती है।

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  10. मैं कामबोज जी की बातों से सहमत हूँ

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  11. माँ की अवस्था का बहुत ही मार्मिक व सजीव चित्रण किया है आपने ....आँखे भर आईं क्योकि मैंने तो बहुत कम उम्र में ही माँ को खो दिया था .. ईश्वर आपकी माँ को स्वस्थ्य रखे यही प्रार्थना है ....
    डा. रमा द्विवेदी

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  12. बहुत हृदयस्पर्शी कविता है...सीधे मन की गहराई में उतर गई...।
    सच में, जब वृद्ध हो रही या हो चुकी माँ कभी भावनातिरेक में संसार छोड़ कर जाने की बात करती है, तो बड़ी पीड़ा होती है...तब शायद हर बेटी के मुँह से यही निकलता है-

    जाना न माँ
    इतनी जल्दी भी क्या है|

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  13. ऋता शेखर ‘मधु’ जी हार्दिक अभिवादन आप का
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया को समर्थन देने के लिए आप का आभार ..
    बहुत सुन्दर रचना आप की माँ हमारी जान है अमोल धरोहर है ममता है देवी है ....अंतिम सांस तक इन्हें नहीं भूलना चाहिए

    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    दिल से निकलती रुआँसी आवाज़
    माँ सा प्यारा कोई नहीं
    वृद्ध हो तो क्या हुआ
    तुम अभी भी नही हो बेकार
    अनुभवों का हो खज़ाना
    जीवन के इस मोड़ पर भी
    तुम्हें हमें है सजाना|

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  14. Rita i don`t agree that mummy 'HAAR HUI HAIN'.She is very much a winner with all her children doing sooo well in life -Sheela Bhabhi

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