पृष्ठ

शनिवार, 14 जुलाई 2012

सत्य का तेज



एथेंस का सत्यार्थी
उसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
यह कहानी
तब सिर्फ
पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी
गूढ़ता समझने की शक्ति नहीं थी
आखिर सत्य
इतना चमकीला हो सकता है क्या
कि कोई उसे देख न सके
देखना चाहे तो
न चाहते हुए भी
नजरें मुंद जाएँ|

कुछ अनुभव
कुछ लड़ाई थी
सच झूठ की
तब यह जाना
सत्य का तेज
वास्तव में
सूर्य का तेज है
भले ही बादलों का
झूठ का
आवरण पड़ जाए
सत्य उसके पीछे छुप जाता है
किन्तु जब भी वह झाँकेगा
प्रकाश-पुँज से परिपूर्ण
उसका तेज
आँखें चौंधिया देगा|
सूर्य पर ग्रहण लगता है
ढका है
तब तक तो ठीक है
जब वह
ग्रहण के ग्रास से निकलता है
कोई भी
उस तेज को देखने में समर्थ नहीं
तभी तो
एक्स रेप्लेट की जरूरत पड़ती है|

सत्य भी उसी शान से
चमकता हुआ
बेधड़क आता है
झूठ ने उसे
कितना भी डराया हो
डर की पराकाष्ठा
सत्य को निडर बना देती है
नजरें तो
झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं
स्वाभिमानी सत्य
ऊँची नजर से
मुस्कुराता हुआ
परचम लहराता हुआ
वही शाश्वत गान गा उठता है
सत्यमेव जयते !!!

ऋता शेखर मधु

26 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य का तेज .... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. ‘सत्यमेव जयते’ ……………सटीक अवलोकन

    जवाब देंहटाएं
  3. नजरें तो
    झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं
    स्वाभिमानी सत्य
    ऊँची नजर से
    मुस्कुराता हुआ
    परचम लहराता हुआ
    वही शाश्वत गान गा उठता है
    ‘सत्यमेव जयते’ !!!

    बहुत सुन्दर....

    जवाब देंहटाएं
  4. झूठ ने उसे
    कितना भी डराया हो
    डर की पराकाष्ठा
    सत्य को निडर बना देती है

    तभी तो सदैव सत्य की जीत होती है।
    यथार्थपरक कविता।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर...

    झूठ ने उसे
    कितना भी डराया हो
    डर की पराकाष्ठा
    सत्य को निडर बना देती है
    नजरें तो
    झूठ को ही झुकानी पड़ती हैं,

    बहुत अच्छी रचना
    बधाई ऋता जी...
    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. सत्य को कोई सह नहीं पाता ... झूठ की बैसाखियों पर चनेवाले पाँव इतने लाचार होते हैं कि यथार्थ की धरती पर खड़े नहीं हो सकते . जो सच सामने आता है , उसके पीछे कई सच होते हैं - जिनको न कोई सामने लाना चाहता है , न कोई सुनना चाहता है . अपनी डफली अपना राग उत्तम है

    जवाब देंहटाएं
  7. झूठ ने उसे
    कितना भी डराया हो
    डर की पराकाष्ठा
    सत्य को निडर बना देती है....सही कहा..तभी तो‘सत्यमेव जयते’ !!!बहुत सुन्दर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर भाव
    सत्य को आवरण में
    डाल भी तो तब भी
    अनावृत हो जाता है
    सत्य का तेज
    कहाँ सहा जाता है

    जवाब देंहटाएं
  10. स्वाभिमानी सत्य
    ऊँची नजर से
    मुस्कुराता हुआ
    परचम लहराता हुआ
    वही शाश्वत गान गा उठता है
    ‘सत्यमेव जयते’ !!!

    सुंदर भाव पूर्ण प्रस्तुति,,,,,,


    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

    जवाब देंहटाएं
  11. झूठ ने उसे
    कितना भी डराया हो
    डर की पराकाष्ठा
    सत्य को निडर बना देती है
    बेहद सशक्‍त भाव ... आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. शिवम मिश्रा जी,
    ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक आभार...
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है|

    जवाब देंहटाएं
  13. एथेंस का सत्यार्थी
    उसने जब सत्य को देखा
    आँखें चौंधिया गई थीं उसकी
    यह कहानी
    तब सिर्फ
    पढ़ने के लिए पढ़ लेती थी

    जरा इस कहानी के बारे में भी बताईयेगा,ऋतु जी
    आपकी प्रस्तुति लाजबाब है.
    सत्यमेव जयते

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!