पृष्ठ

सोमवार, 17 मार्च 2014

चटक गए टेसू पलाश


चटक गए टेसू पलाश

लिपट रही फगुनाई

आम्रकुँज के बौर पर

कोयलिया गीत सुनाई

पंखों पर रंग लिए

तितली दौड़ी आई


ये कौन ऋतु आई सखी

कौन ऋतु आई


रंगों के बादल में

खुशियों की बौछार है

फाग के राग में

साजन की पुकार है

कागा के बोल में

प्रिया का श्रृंगार है


ये कौन ऋतु आई सखी

कौन ऋतु आई


रीती अँखियाँ चुनरी कोरी

बिन कान्हा के भाय न होरी

ब्रज की गलियों में ढूँढ रही

श्याम को वृषभान की छोरी

समझाने से समझे नाहिं

रोती छुपके चोरी चोरी


ये कौन ऋतु आई सखी

कौन ऋतु आई

........ऋता 

3 टिप्‍पणियां:

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!