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रविवार, 11 मई 2014

ओ माँ मेरी....


ओ माँ मेरी....

तू ही तू 
तू ही तू
हर सांस में तू
हर आस में तू
हर मुश्किल में साथ खड़ी
माँ, मेरे एहसास में तू

भोर की तुलसी है तू
पूजा का चंदन है तू
रसोई की सोंधी खुश्बू 
क्षुधा की पूर्ति है तू

हर सीख में तू
तहज़ीब में तू
गलत कदम को रोकती
मीठी सी झिड़की है तू

देहरी है तू
मर्यादा भी तू
बिन बोले ही समझ सके
मेरे मन की भाषा है तू

कलम भी तू
किताब भी तू
बारहखड़ी जब भी भूली
हाथ की छड़ी है तू

आँखों की नमी है तू
धरा की ठोस जमीं है तू
अँगुली तेरी थाम रही
मेरे हर पग में है तू

रेशम की हर मूँज में तू
खुशियों की हर गूँज में तू
जा बैठी हूँ दूर कहीं
लगे दीपक की हर पुँज में तू

जेठ में छाया है तू
पूस की लिहाफ भी तू
सावन की कोमल बूँद है
शक्ति का स्वरूप है तू

हमारी हर उड़ान में तू
हमारी हर पहचान में तू
मुँह से चाहे कुछ ना बोलूँ
मेरे हर अरमान में तू

ममतारूपी छाँव है तू
मायकारूपी ठाँव है तू
अपनापन तुझसे ही है
मधुर मनोरम गाँव है तू
...........ऋता

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ऋता जी

    आभार

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  2. सचमुच संतान के लिए माँ सब कुछ है , तुष्टि,पुष्टि,छाँव-ठाँव,हर मुश्किल में साथ और हाँ ,मायका -पुत्री की सबसे प्यारी शरण !

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  3. उम्दा रचना वैसे भी माँ पर कुछ भी लिखना सुंदर सा लिखना ही होगा हमेशा ही :)

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  4. बहुत प्यारी रचना ...माँ का प्रेम तो अनमोल है
    भ्रमर ५

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  5. माँ सब कुछ है ... उससे आगे कोई नहीं ...
    भावपूर्ण एहसास ..

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