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रविवार, 18 मई 2014

मिलेगा सम्मान देख लेना ...चतुष्पदी रचनाएँ


१.
आइने को पोंछ दूँ या खुद को सँवार लूँ
वक्त के धुँधलके में मैं रब को पुकार लूँ
हे प्रभु निखार दो मेरे अंतस का दर्पण
तुम्हारा दिव्य रूप मैं उसमे निहार लूँ|
............ऋता शेखर 'मधु'
२.
मिलेगा सम्मान देख लेना |
मिलेगी मुस्कान देख लेना |
हौसलों में होती है उड़ान,
ऊँचा आसमान देख लेना |
......ऋता शेखर 'मधु'
३.
बात अब तो मान लीजे,
इस धरा को मान दीजे|
वृक्ष को काटे न कोई,
बस यही आह्वान कीजे|

........ऋता शेखर 'मधु'
४.
२२२२  २२२२  २२२२  २२
तुझ में रम कर सुध बुध खोई  मेरे नटवर कान्हा|
मइया कह मुझको दुलरावे मेरा प्रियवर कान्हा|
बाल सखा गोपी की बातें मुझको नहिं हैं भातीं,
मैं ना मानूँ छलिया है वह मेरा  ईश्वर कान्हा||
..........................ऋता शेखर 'मधु'
५.
दिल के चमन में तो सिर्फ फूल खिलते हैं
दिमाग वाले हाथों में शूल लिए मिलते हैं
कैलाश से हमेशा स्वच्छ धारा उतरती है
प्रदूषण की मारी पीने लायक न रहती है
.........................ऋता शेखर 'मधु'
६.
अम्बर में उड़ता बादल कहता धरती की प्यास बुझाओ|
उजियारा सूरज यह बतलाता व्यर्थ समय ना गंवाओ|
अंतस के गहरे सागर में मिलती है जीवन की सीपी,
चुनकर भावों के मोती तुम कविमन छन्द बहर में गाओ|
...........................................ऋता शेखर 'मधु'
७.
पंछी का कलरव जब भी गूँजा वेद ऋचा का भान हुआ
दूर गगन में देख तिरंगा जन मन को गौरव ज्ञान हुआ
सावन में रच देती है पावस विल्व पत्र की हरियाली
चौखट पर कुंकुम टीके से नारी का सम्मान हुआ|
...........................................ऋता शेखर 'मधु'
८.
सिर पर गारा हाथ में छेनी धूप भी तो स्वीकार है|
पेट है खाली बदन पर चिथड़े ना कोई प्रतिकार है|
मौन मुख बाजू फौलादी माथे पर हैं श्रम की बूँदें,
हर पल की कीमत दो श्रमिकों को, यह उनका अधिकार है|
...ऋता शेखर 'मधु'

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