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गुरुवार, 10 नवंबर 2016

भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली

११
जीवन जीने के कौशल में, होती कई परीक्षा
वो ही अव्वल आ पाते जो, पाते नैतिक शिक्षा
१२.
सावन भादो के मौसम में, करता है खुदगर्जी
बादल को अब आने भी दे, नभ को भेजो अर्जी
१३.
बासंती मौसम में आईं, कलियाँ नई नवेली
मनभावन खुश्बू से देखो, सबकी बनीं सहेली
१४.
भली लगे सबके कानों को, बोलो ऐसी बोली
कूक कूक कर अमराई में, कोयल शरबत घोली
१५.
मन माटी की हर क्यारी में, बीज प्रेम के बोना
सद्भावों से महक उठेगा, घर का कोना कोना
१६.
देशप्रेम की स्वच्छ सोच में, कैसी नफरत जागी
जात धर्म की उग्र हवा में, फूल हुए हैं बागी
१७.
स्वस्थ बीज अच्छी सिंचन से, आती है हरियाली
गेहूँ की बाली के संग संग, आएगी खुशहाली
१८.
इंद्रधनुष के सप्तवर्ण में, हमें तीन है प्यारा
प्रगतिशील झंडे में सजकर, चक्र लगे है न्यारा
१९.
निर्निमेष व्याकुल अँखियों से, ताक रहा है चातक
मिलती ना बूँदें स्वाती की, प्यास बनी है घातक
२०.
नई राह पर नए कदम की, दुनिया है अनजानी
मायावी बातों में आकर, ना करना नादानी
२१.
पवन मेघ अरु धूप रूप में, आया है वनमाली
उसकी अगवानी करने को, झुकी फूल की डाली
२२.
अथक परिश्रम अटल आस से, दूर करो हर बाधा
खुशियों से खुशियाँ मिलती हैं, गम होता है आधा
२३.
कंकड़ पाथर के ऊपर से, निर्मल सरि सा बहना
सदा पहन कर सुन्दर दिखना, निश्छलता का गहना
२४.

ताकधिना धिन ताकधिना धिन, जमकर बरसा सावन
पुलकित बूँदों के नर्तन से, पात बने हैं पावन
२५.
रातों को जल्दी सो जाओ, सुबह सवेरे जागो
लाख टके की हवा मिलेगी, प्रातभ्रमण को भागो
२६.
बड़े दिनों पर पोते के घर, दादी अम्मा आई
बालक मन के गुलमोहर पर, डोली है पुरवाई
२७.
अरुणाचल की लाली में अब, जागी है अरुणाई
कोयल कूकी, बैल चले हैं, फैल रही तरुणाई
२८.
लम्बे चौड़े वादे मुकरे , उम्मीदें हैं भूखी
जबसे उनको वोट मिला है, बातें करते रूखी
२९.
मँहगाई के डंडे से वे, छीन रहे हैं रोटी
जाने किस किस हथकंडे से, जेब हुई है मोटी
३०.
हहराती बलखाती गंगा, धरती पर मुड़ जाती
फसलों की जड़ तक वह जाए, ऐसी जुगत लगाती
३१.
इस नश्वर दुनिया में मानव, जोड़ के रखो कड़ियाँ
जाने कब कौन कहाँ छूटे, बोल रही हैं घड़ियाँ
३२.
धरती की बढ़ती गरमी से, घबराती है बरखा
सत्य अहिंसा के दामन से, किसने छीना चरखा

---------ऋता शेखर मधु

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