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रविवार, 25 दिसंबर 2016

मरियम

मरियम
गिरजाघर की रौनक देखते ही बन रही थी| चारों तरफ क्रिसमस ट्री पर सजे रंग बिरंगे बल्ब जुगनू की तरह टिमटिमा रहे थे| दुधिया रौशनी से नहाया गिरजाघर का घंटा, अतिथियों के आने जाने का ताँता, हर्षपूर्ण वातावरण, तितलियों की तरह उड़ती फिरती परियों सी नन्हीं बच्चियाँ, इशारों ही इशारों में प्यार का इजहार करने वाले नौजवानों की टोलियों ने त्योहार में इंद्रधनुषी रंग बिखेर दिए थे| ‘मेरी क्रिसमस’ के उल्लसित स्वर बरबस ही बता रहे थे कि आज के पावन दिन पर किसी देवदूत ने अवतार लिया था जिसने अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध जंग लड़ी और जनमानस के जीवन में छाए तम को हटाकर सूर्य की उज्जवलता भर दी| सूली पर कीलों से ठोके गए पर उफ्फ न की|
निश्चित समय पर गिरजाघर के पादरी ने अतिथियों को सम्बोधित कर बधाइयाँ देते हुए कहा-
‘ धरती पर आने वाले हर नवजात में यीशु है| उनका दिल से स्वागत करो| कौन हमारी मुश्किलों से हमें निकालने वाला है यह भविष्य की तिजोरी में कैद है| हम नन्हें यीशु का स्वागत करेंगे तो माँ मरियम की ममता का अस्तित्व रहेगा|’
पादरी के सम्भाषण के बाद लोग कतारों में आकर मरियम और यीशु मूर्ति को देखते और सम्मान में सिर झुकाते| इसके बाद देर रात तक पार्टी चलती रही| नाच गाना से हॉल थिरक रहा था|
उसी हॉल में एक कोने में टेबल पर बैठी स्टेला गोद में एक शिशु को लिए बार बार ढक कर उसे कड़ाके की ठंड से बचाने की कोशिश कर रही थी| उसकी आँखें किसी को ढूँढ रही थीं| पादरी भी इधर उधर घूमते हुए कई बार स्टेला के पास से गुजरे, ठिठके, फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए| स्टेला निर्विकार आँखों से उन्हें ताकती रही|
धीरे धीरे रात गहराने लगी| माहौल थमने लगा| अचानक एक बड़ी सी गाड़ी गिरजाघर के सामने आकर रुकी| पादरी के साथ साथ स्टेला की नजर भी उठी| गाड़ी से शहर के बड़े उद्योगपियों में एक मिस्टर अल्वा अपने बेटे जॉन के साथ उतरे|उन्होंने सीधे जाकर मरियम-यीशु के पास जाकर सिर झुकाया फिर पादरी के पास गए| पादरी ने देखा कि स्टेला भी धीरे धीरे चलकर उधर ही आ रही थी|
‘जॉन ये देखो, हमारा बेटा’ स्टेला ने रुक रुक कर कहा|
‘व्हाट रबिश, ये क्या कह रही,’ हड़बड़ा गया था जॉन| पादरी और मिस्टर अल्वा चौंक गए|

‘मैं चाहती तो दुनिया में इसे नहीं लाती, मगर मैंने ऐसा नहीं किया| फ़ादर हमेशा कहते हैं कि हर नवजात में यीशु है| मैं यीशु को आने से कैसे रोक सकती थी| इसे अपना लो जॉन|’ स्टेला के स्वर में आग्रह था|
‘नही लड़की, इस बात का जिक्र कहीं नहीं करना| तुम भी चाहो तो अनाथालय में इसे रखकर आजाद हो सकती हो|’ मिस्तर अल्वा ने कड़े स्वर में कहा|
‘नहीं, मैं भी मरियम हूँ| यह शिशु मेरा यीशु है| मैं पालूँगी इसे|’ पादरी पर गहरी नजर डालते हुए स्टेला ने कहा|
धीरे धीरे स्टेला के कदम गिरजाघर से बाहर निकल रहे थे| पादरी कभी मरियम की मूर्ति को देखते और कभी स्टेला को, परन्तु वे स्टेला को आगे बढ़कर रोक न सके| उन्होंने मिस्टर अल्वा के सामने हाथ जोड़ दिया-
‘ मरियम तो चली गई, अब कैसा क्रिसमस !! गिरजाघर बन्द करना चाहता हूँ| इजाजत दीजिए|’
---ऋता शेखर ‘मधु’

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-12-2016) को "निराशा को हावी न होने दें" (चर्चा अंक-2568) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत अच्छी सामयिक जानकारी
    क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं

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