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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

प्रैक्टिकल नॉलेज



प्रैक्टिकल नॉलेज

'अरे, आज ये महाशय ऑटो में', मन ही मन आश्चर्यचकित होते हुए मैं भी उसी ऑटो में बैठ गई|

वो सज्जन मेरी कॉलनी के थे| रइसों में गिनती होती थी उनकी| काम पर जाने का उनका समय भी सुबह नौ बजे ही होगा तभी लगभग हर दिन रास्ते में बड़े गेट से निकलती बड़ी सी गाड़ी में उन्हें देख देखकर पहचान गई थी| वे मुझे नहीं जानते थे|


ऑटो तेजी से गंतव्य की ओर बढ़ रहा था| जगह पर पहुँच कर वे उतरे और ड्राइवर की ओर पाँच सौ का नोट बढ़ाया|

' साहब जी, आपको सिर्फ आठ रुपए देने हैं| इतनी सुबह मैं पाँच सौ के छुट्टे न दे पाऊँगा|'

'आज ऐन वक्त पर मेरी गाड़ी खराब हो गई| समय नहीं था तो ऑटो पर आ गया|छुट्टे रखने की आदत नहीं और वॉलेट में सारे नोट पाँच सौ के ही हैं', उन्होंने ऑटो से आने की मजबूरी बताई|

' जाइए साहब जी, कोई बात नहीं| कभी कभी आम पब्लिक की तरह सफर करेंगे तभी प्रैक्टिकल नॉलेज होगी न| हर तरह की सवारी के अपने कायदे होते हैं,'मुस्कुराते हुए ड्राइवर ने कहा|

वे बेबस से खड़े थे|

'सर, वो नोट इधर दीजिए', तब तक मैं सौ सौ के पाँच नोट निकाल चुकी थी|
उन्होंने धन्यवाद कहते हुए सारे नोट लिए और एक नोट ऑटो वाले को दिया|
वापसी में पचास , बीस और दस के नोट के साथ दो का सिक्का भी था|

सिक्के ने अपना महत्व बताते हुए अमीर वॉलेट में जगह बना लिया|

--ऋता शेखर 'मधु'

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