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मंगलवार, 22 अगस्त 2017

अमरत्व-लघुकथा

अमरत्व

भारत में कम्पनी स्थापित करने के इरादे से अमरीका से मिस्टर हैरी की अगुआई में एक टीम भारत आई थी| वे महानगर के आसपास की पर्यावरणीय स्थिति का अवलोकन करना चाहते थे इसलिए उन्हें बंगलोर के निकटस्थ जंगल में लाया गया था| वहाँ लगे आम्रकुँज, जामुन , पीपल, बरगद और चीर के समूह से वे बहुत प्रभावित हो रहे थे| जंगल के बीचोबीच एक स्मारक था जहाँ लिखा था-

'' लोग जंगल काटकर इमारत बनाते हैं| मैं इमारत ढाहकर जंगल बसा रही हूँ| अगली पीढ़ी के लिए मैं विरासत में हरियाली और ऑक्सीजन की दौलत छोड़े जा रही हूँ| मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन मेरा पोता यहाँ जरूर आएगा| उस वक्त इन पेड़ों की हवाएँ उसे सहलाएँगी और वह मुझे याद करेगा| कोयल और पपीहों की आवाज में उसे मेरी लोरी सुनाई देगी| फूलों की खुश्बू में वह अगबत्ती की सुगंध महसूस करेगा| आओगे न हरीश...
तुम्हारी दादी-मालती स्वामी "
''मैं आ गया हूँ दादी, तुम्हारा हरीश आ गया,'' नम आँखों से अचानक मिस्टर हैरी स्मारक से लिपट गए|
उनके मस्तिष्क में चलचित्र की भाँति एक धुँधला सीन चल रहा था|
''माँ, ये इमारत बेच दीजिए और हमारे साथ अमरीका चलिए| मैं हरीश को भारत में नहीं रखना चाहता| अमरीका की उच्च जीवन शैली में उसे उच्च शिक्षा दूँगा|''
''नहीं , मैं अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी| इमारत भी नहीं बेचनी है| यहाँ मैं जंगल बसाऊँगी,''दस वर्ष की उम्र में सुनी हुई दादी की दृढ़ आवाज आज फिर हरीश के कानों में गूँज गई|
''मिस्टर हैरी, दिस लोकेशन इज़ ब्यूटिफ़ुल| वी शुड एस्टैब्लिश आवर कम्पनी हियर| व्हाट इज़ योर ओपिनियन,'' साथ आए मिस्टर डिसूजा ने पूछा|
''इस जंगल को मैं नहीं काट सकता| यहाँ मेरी ग्रैंडमॉम रहती है|''
कहते हुए मिस्टर हैरी दूसरे स्थान के अवलोकन के लिए बढ़ गए|
--ऋता शेखर 'मधु'

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर लघुकथा।
    वैसे मेरे अन्दर के सिनिकल आदमी को इस बात से हैरत थी कि उधर के लैंड माफिया ने इतने सालों तक ऐसी जमीन को नहीं हथियाया। असल ज़िन्दगी में तो उन्होंने इसे हथियाकर उधर एक बहुमंज़ली इमारत बसा ली होती।

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