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गुरुवार, 24 अगस्त 2017

पुनर्घटित-लघुकथा

पुनर्घटित
''माँ, भइया, देखिए, मेरा निफ़्ट का रिज़ल्ट आ गया है| मैं टॉप टेन में हूँ| मुझे मनचाही जगह मिल जाएगी| मुझे बताइए आपलोग कि कहाँ एडमिशन लूँ?'' निम्मी ने चहकते हुए आवाज दी|
''कोई जरूरत नहीं कहीं भी जाने की| यहीं से ग्रेजुएशन करो चुपचाप'', अचानक भाई निखिल की आवाज आई|
''क्यों जरूरत नहीं, मेरी एक फ्रेंड का भी हुआ है, वो कोलकाता जाएगी|'' ''उसे जाने दो, तुम्हें कहीं नहीं जाना|''
''भइया..." निम्मी रोकर पैर पटकती हुई कमरे में चली गई|
पापा का नहीं रहना आज से पहले उसे नहीं खला था|
तब तक माँ आ गई थी| उन्हें लगा जैसे निम्मी की जगह वह खड़ी हैं और निखिल की जगह उनका भाई जो उच्च स्वर में कह रहा हो,''मेरे दोस्त का छोटा भाई उच्च पद पर है| रुनी के लिए इससे अच्छा वर नहीं मिलेगा| माँ, इस वर्ष इसकी परीक्षा छुड़वा दीजिए और उसकी शादी कीजिए| बाकी पढ़ाई शादी के बाद भी कर सकती है,'' और माँ कुछ न बोली| एक मलाल लिए रुक्मणि ससुराल चली गई |
आज वह भी उसी जगह खड़ी थी किन्तु वह अपनी माँ की तरह चुप नहीं रहना चाहती थी|
''वह जाएगी, अभी उसकी माँ जिन्दा है|''
बेटे की बात का कभी विरोध न करने वाली माँ आज अचानक भाई-बहन के बीच ढाल बनकर खड़ी हो गई|
-ऋता शेखर 'मधु'

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’क्रांतिकारी महिला बीना दास जी को नमन - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-08-2017) को "क्रोध को दुश्मन मत बनाओ" (चर्चा अंक 2708) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    गणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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