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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

शरद पूर्णिमा

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1
चाँदनी युक्त
गर्वीला रूप तेरा
सम्पूर्ण तुम
आज की रात
तीन रंग की चुन्नी
ओढ़ ली मैंने
चन्दा, बता दे जरा
कहाँ है मीत मेरा।


2
खिलखिलाता
चन्द्रमा रुपहला
मुग्धा नायिका
पी के आलिंगन में
घूँट घूँट पी रही
अमृत धारा।

3
तुम्हे सताने
छुप जाती चाँदनी
तड़पे तुम
अमा में सारी रात
ऐ चाँद
कभी तुम भी तो कहो
अपने दिल की बात
4
शरद पूर्णिमा
चन्दा मामा की
सज धज निराली
लपका मुन्ना
खिलखिल कर
माँ ने बुलाया
आओ बेटा
चांदी की कटोरी में
खीर भरें हम सब
आएगी चाँदनी मामी
रूप और मिठास लिए
अंजुरी भर आस लिए।
--ऋता शेखर मधु

मुक्तक

बाँटना हो गर तुम्हें कुछ, बाँट दो शुभ ज्ञान को|
त्यागना हो गर तुम्हें कुछ, त्याग दो अभिमान को|
जिंदगी में हर कदम पर शुभ्रता शुचिता रहे,
वक्त देकर जब सहेजो वृद्ध की मुस्कान को|

-ऋता शेखर 'मधु'

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-10-2017) को "ब्लॉग के धुरन्धर" (चर्चा अंक 2750) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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