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सोमवार, 12 मार्च 2018

नाज करो कि तुम नारी हो

नाज करो कि तुम नारी हो
नाज करो कि सब पर भारी हो
नाज करो कि तुमसे संसार है
नाज करो कि धुरी के साथ हाशिया भी हो
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है


तुम बया हो जो खूबसूरत नीड़ बुनती है
गर आंधियों में बिखर भी गए
तो सम्बल और धैर्य चुनती हो
दुआ तुम्हारी प्रभु भी स्वीकारते
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

तलवों के नीचे की जमीन
शुष्क रूखी कठोर हो
या फिर मखमली शीतल दूब हो
नमी के साथ उर्वर रखती अहसास
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

पहाड़ जैसी अडिग हो
गलत को गलत कहने के लिए
नदी जैसी निर्मल हो
निश्छलता से बहने के लिए
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

एक कर में नवजीवन रखती
दूजा कर सेवा को समर्पित
तीजे कर में ई गैजेट्स संभालती
चौथा कर कलम को अर्पित
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

मधुर स्वरों की मालकिन तुम
हर क्षेत्र तुम्हीं से सज्जित है
आखिर क्यों फिर आधी दुनिया
तुम्हारे जन्म से लज्जित है
इतनी अपूर्णता भी किसे मिलती है

नाज करो कि नारी हो
-ऋता

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