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रविवार, 13 दिसंबर 2020

रविवार, 6 दिसंबर 2020

कर्णेभिः 16- पिघली मोम - महिमा श्रीवास्तव वर्मा-वाचन- ऋता शेखर


साहित्य मधु की प्रस्तुति

कर्णेभिः- लघुकथा वाचन की रविवारीय शृंखला-१६ (०६/१२/२०२०)

लघुकथा- पिघली मोम

लेखिका- महिमा श्रीवास्तव वर्मा

कथा सौजन्य- शारदेय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘काफ़िला’ से

स्वर, समीक्षा व वाचन –ऋता शेखर ‘मधु’

सम्पर्क सूत्र- madhur.sahitya@gmail.com


बुधवार, 25 नवंबर 2020

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ

------------- 

१.

आँधियाँ चलीं

दो पँखुरी गुलाब की

बिखर गईं टूटकर

मन पूरे गुलाब की जगह

उन पँखुरियों पर 

अटका रहा|

2

रेगिस्तान में

आँधियों ने मस्ती की

रेत से भर गई थीं आँखें

आँखों पर 

होने चाहिये थे

चश्मे


3

हवा स्थिर थी

जब रौशन किया था 

एक दीया

मचल गई ईर्ष्यालु आँधी

और 

लौ को हाथों की ओट

दे दिया हमने 

--ऋता

रविवार, 22 नवंबर 2020

कर्णेभिः 14 एक आसमान- गिरिजा कुलश्रेष्ठ-वाचन-ऋता शेखर मधु

साहित्य मधु की प्रस्तुति

कर्णेभिः- लघुकथा वाचन की रविवारीय शृंखला-१४ (२२/११/२०२०)

लघुकथा- नया आसमान

लेखिका- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

स्वर, समीक्षा व वाचन –ऋता शेखर ‘मधु’

सम्पर्क सूत्र- madhur.sahitya@gmail.com

अभी तक प्रकाशित रचनाएँ-

१४. एक आसमान-गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी-२२/११/२०

१३.तथास्तु-कंचन अपराजिता जी१५/११/२०

१२.डर्टी पिक्चर-प्रियंका गुप्ता जी-८/११/२०

११.घर-शशि पाधा जी- 01/11/20

१०. पहियों वाला घर, आर्तनाद-संतोष सुपेकर जी-25/10/20

. मौन- त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी- १८/१०/२०

८.गाइड- कविता भट्ट जी-११/१०/२०२० प्रकाशित

.कालचिड़ी-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी - 04/10/2020

.किराया-डॉ कमल चोपड़ा जी- 27/09/20

. बछड़ू- मृणाल आशुतोष जी- 20/09/20

. कसक- डॉ आशा सिंह जी- 13/09/20

३.समय - अलका प्रमोद जी—06/09/2020

२. लड़की- मिथिलेश दीक्षित जी—30/08/2020

१.महक-निवेदिता श्री जी -23/08/2020


रविवार, 15 नवंबर 2020

कर्णेभिः 13 तथास्तु- कंचन अपराजिता, स्वर- ऋता शेखर मधु


साहित्य मधु की प्रस्तुति

कर्णेभिः- लघुकथा वाचन की रविवारीय शृंखला-13 (15/11/2020)

लघुकथा- तथास्तु

लेखिका-  कंचन अपराजिता

स्वर, समीक्षा व वाचन –ऋता शेखर ‘मधु’

कथा सौजन्य- लघुकथा के परिंदे

सम्पर्क सूत्र- madhur.sahitya@gmail.com


शनिवार, 7 नवंबर 2020

चार लघुकथाएँ


१.
कब तक
"अरे आभा, इतनी बुझी बुझी क्यों है? अभी सिर्फ महीना भर शादी को हुए हैं। लाइफ एन्जॉय करना चाहिए, पर तेरे चेहरे पर तो।"
"माला, लड़कियां लाइफ एन्जॉय कब और कैसे करें...शादी के पहले माँ ने सास का नाम ले लेकर डराया। ये करो, वो नहीं करो, नहीं तो सास के उलाहने पड़ेंगे।अब बात बेबात सास, माँ का नाम लेती रहती हैं।इन दो माओं के बीच लड़की का अस्तित्व कहाँ है।"
"आभा, तुम्हारी बात तो शत प्रतिशत सही है। आओ, हमलोग प्रण करें कि अपनी बेटियों को सही शिक्षा अच्छे नागरिक बनने के लिए देंगे, न कि किसी के नाम से भय दिखाकर..."
ऋता शेखर 'मधु'
२.
सागर की आत्महत्या
नलिनी ने सुबह की चाय के साथ अखबार भी ले लिया था।अखबार में एक कहानी छपी थी। कहानी का शीर्षक आकर्षक था " एक सागर की आत्महत्या"।
" एक सागर था। अपने आप में मस्त, मीठे जल, शांत लहरों वाला। सागर की विशालता देखते हुए उसमें जाने कितने जीव जंतुओं ने आश्रय लेना शुरू कर दिया। उदारमना सागर सभी का आश्रयदाता बन गया। उतने जीव जंतुओं ने सागर के जलको उद्वेलित करना शुरू कर दिया। एक दिन सागर ने देखा कि एक नन्ही सी सीप उसकी तली में बैठी है। उसने वहाँ पर अपनी लहरों को शांत करके सुरक्षा दी । उसमें एक चमकीले मोती का सृजन हो रहा था। एक दिन सागर शांत भाव से किनारे की चहलकदमी कर रहा था कि सामने से एक नदी आती दिखी। शायद बहुत दूर से आ रही रही। थकी थकी सी। सागर ने अपनी बाहें फैला दीं और नदी उसमें समाहित हो गयी। धीरे धीरे सागर ने महसूस किया कि सृष्टि के इतने सारे जीवों और नदियों को समेट लेने से उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गयी थीं। उसका जल खारा हो गया था। उसकी लहरों का वेग बढ़ गया था। अब वह शांत नहीं था बल्कि बहुत कुछ कहने को किनारे पर भागता । फिर बिना कहे लौट जाता क्योंकि सब उसके खारेपन को लेकर मजाक बनाते थे। कोई नहीं समझ पाता था कि जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए मीठा रहना मुश्किल था।सबके लिए उसने अपनी आत्मा को मार लिया था। सागर की इस आत्महत्या को समझने वाला ही कौन था।"
नीचे लेखक का नाम पढ़ते ही नलिनी की आँखें फैल गईं। साहिल कब से लिखने लगा। नलिनी के दिल में कसक सी उठी। "ओह! मैंने और बच्चों ने साहिल को खडूस कहकर बहुत मजाक बनाया है। अशक्त माता पिता और दो छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारियाँ निभाने में कभी कभी मैं भी स्वार्थी बनकर कठोर हो जाती हूँ। तो क्या साहिल मुझसे मन की बात कहना चाहता है किंतु मैने कभी सुननी ही नहीं चाही। कितना दर्द छुपा है उसके मन में।"
दो दिन पहले आफिस के काम से शहर से बाहर गए पति को फोन लगाने के लिए उसने मोबाइल उठा लिया।

*जंगल की नदी*
'दादी, मुझे उस बड़े जंगल में जाना है," छोटा मेमना अपनी दादी की गोद में ठुनक रहा था|
" नहीं, वहाँ नहीं जाना| वहाँ बड़ी सी नदी है जिसमें मेमने बह जाते हैं| वह भी तो बह गया था"
"कौन बह गया था दादी, बताओ न"
"तुम्हारा चाचा,वह भी जब नन्हा सा मेमना था पूरे जंगल में अपनी धाक जमाना चाहता था| इसके लिए वह अपना छोटा जंगल छोड़कर बड़े जंगल में चला गया| वहाँ उसे उसके काम की बहुत वाहवाही मिली| तभी उसकी दोस्ती एक लोमड़ी से हो गई| लोमड़ी ने धीरे धीरे मेमने को अपने अधिकार में लेने लगी| मेमना इसे समझ नहीं पाया| अचानक एक दिन उसने देखा कि उसके चारो ओर शेर , चीते, भेड़िए खड़े हैं | वह घबड़ा गया और भागने की तरकीब सोचने लगा| तभी उसने देखा कि लोमड़ी दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी| वह सारी बात समझ गया किंतु तब तक भागने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे|
एक दिन छोटे जंगल में सभी स्तब्ध हो गये थे जब उन्हें खबर मिली कि मेमना नदी में डूब गया," कहते हुए दादी ने लम्बी साँस ली|
"मैं तैरना सीखकर जाऊँगा न, फिर नहीं बहूँगा" मेमना अपनी जिद पर अड़ा था|
"वह भी कुशल तैराक था,"कहकर दादी ने आँखें पोंछ लीं|

४. कुछ अच्छा भी
=========
नीरज को दोस्ती करना अच्छा लगता था। सिर्फ दोस्ती ही नहीं करता , यदा कदा घर में दोस्तों को बुलाकर पार्टियाँ भी दिया करता।उसकी पत्नी जूही सहर्ष पार्टियों का इंतेज़ाम करती। नीरज का दस वर्षीय बेटा रोहन भी अपने पिता के मित्रों के बच्चों का दोस्त बन गया था।
दोस्तों से घिरा रहने वाले नीरज को कोरोना के कारण घर में कैद रहना जल्द ही अखरने लगा। जब अनलॉक शुरू हुआ तो उसने अपने मित्रों को फिर से बुलाया। सबने कोई न कोई बहाना बनाकर आने से इनकार कर दिया। घर में इसी पर चर्चा छिड़ी हुई थी।
"जूही, मेरा कोई मित्र घर नहीं आना चाहता।"
" तो हम उनके घर चलेंगे पापा। आप उनको बता दो कि आज शाम हम आएँगे।" रोहन बीच में बोल पड़ा।
"ठीक है," कहकर नीरज ने अपने एक मित्र को फोन लगाया।
उस मित्र ने कहा कि वह शाम को व्यस्त है। उसके बाद दो अन्य मित्रों ने भी व्यस्तता का बहाना बना दिया।
"बहुत ही खराब समय चल रहा। किसी को दोष देना फ़िज़ूल है," जूही ने संजीदगी से कहा।
"पापा, आप रजनी बुआ को फोन करो। वे मना नहीं करेंगी।"
नीरज को याद आया कि जाने कितने महीनों, नहीं करीब दो वर्षों से उनकी आपस में बात नहीं हुई थी। रजनी पहले हमेशा फोन करती थी किन्तु नीरज के अन्य कॉल पर व्यस्त होने की सूचना मिलते ही रख देती। इस कॉल की सूचना नीरज को भी मिल जाती थी पर उसने कभी कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा। धीरे धीरे रजनी ने फोन करना बंद कर दिया। कभी कभी जूही फोन से हालचाल ले लिया करती थी|
आज अचानक फोन करने में नीरज को थोड़ी झिझक हुई फिर भी उसने कॉल लगाया। रजनी ने तुरंत फोन उठाया और खुश होकर बातें करने लगी।
" रजनी, रोहन तुम्हें मिस कर रहा। क्या तुम यहाँ आ सकती हो या हमलोग ही तुम्हारे यहाँ आ जायें?"
"अरे वाह! आ जाओ भइया। बड़ा मजा आएगा।इसी बहाने तुमलोगों की सैर भी हो जाएगी।"
नीरज ने फोन रख दिया।
"इस संक्रमण ने दोस्त को दोस्तों से दूर कर दिया , पर रिश्ते नजदीक आ गए," जूही ने मुस्कुराकर कहा और रोहन को लेकर तैयार होने चल दी।
@ऋता शेखर' मधु'

रविवार, 1 नवंबर 2020

कर्णेभिः 11-लघुकथा "घर"- शशि पाधा #ऋता शेखर 'मधु' #लघुकथा #शशि पाधा


कर्णेभिः का ग्यारहवाँ अंक प्रकाशित
आज की लघुकथा-घर
लघुकथाकार- आदरणीया शशि पाधा जी
समीक्षा एवं वाचन- ऋता शेखर 'मधु'


गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

नवरात्रि विशेष-पुरस्कार प्राप्त गीत- अम्बिके जगदम्बिके- गीतकार-ऋता शेखर-स्वर- रचना बजाज #ऋत...


सभी मित्रों को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ| 
मेरे इस गीत को फेसबुक के एक बड़े उत्कृष्ट समूह में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है|

एकल काव्य पाठ मंच का दशकोत्सव समारोह सम्पन्न -
*****^*****^****^****^****^****^****^****^****
एकल काव्य-पाठ -एक साहित्यिक मंच द्वारा दस दिवसीय #दशकोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित प्रतियोगिताओं के आदरणीय त्रिलोको मोहन पुरोहित जी ने परिणाम घोषित किये। फेसबुक समूह का 10 वर्ष पुराना समूह। संभवतः पहला समूह जो रचनाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु नगद पुरुस्कार देता रहा है।
प्रथम पुरस्कार-1100 रुपये।
द्वितीय पुरस्कार- 501 रुपये।
तृतीय पुरस्कार- 500 रुपये।
साथ ही प्रमाण/प्रशस्ति पत्र । -
1.#गीत/ग़ज़ल प्रतियोगिता के अंतिम परिणाम -
निर्णायक आदरणीय त्रिलोकी मोहन पुरोहित जी, आदरणीया आदर्शिनी श्रीवास्तव जी, और सुरेन्द्र नवल जी । -
1. लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी
2. ऋता शेखर मधु जी
3. रमा प्रवीर वर्मा जी






गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

कुछ अच्छा भी-लघुकथा

कुछ अच्छा भी
=========
नीरज को दोस्ती करना अच्छा लगता था। सिर्फ दोस्ती ही नहीं करता , यदा कदा घर में दोस्तों को बुलाकर पार्टियाँ भी दिया करता।उसकी पत्नी जूही सहर्ष पार्टियों का इंतेज़ाम करती। नीरज का दस वर्षीय बेटा रोहन भी अपने पिता के मित्रों के बच्चों का दोस्त बन गया था।
दोस्तों से घिरा रहने वाले नीरज को कोरोना के कारण घर में कैद रहना जल्द ही अखरने लगा। जब अनलॉक शुरू हुआ तो उसने अपने मित्रों को फिर से बुलाया। सबने कोई न कोई बहाना बनाकर आने से इनकार कर दिया। घर में इसी पर चर्चा छिड़ी हुई थी।
"जूही, मेरा कोई मित्र घर नहीं आना चाहता।"
" तो हम उनके घर चलेंगे पापा। आप उनको बता दो कि आज शाम हम आएँगे।" रोहन बीच में बोल पड़ा।
"ठीक है," कहकर नीरज ने अपने एक मित्र को फोन लगाया।
उस मित्र ने कहा कि वह शाम को व्यस्त है। उसके बाद दो अन्य मित्रों ने भी व्यस्तता का बहाना बना दिया।
"बहुत ही खराब समय चल रहा। किसी को दोष देना फ़िज़ूल है," जूही ने संजीदगी से कहा।
"पापा, आप रजनी बुआ को फोन करो। वे मना नहीं करेंगी।"
नीरज को याद आया कि जाने कितने महीनों, नहीं करीब दो वर्षों से उनकी आपस में बात नहीं हुई थी। रजनी पहले हमेशा फोन करती थी किन्तु नीरज के अन्य कॉल पर व्यस्त होने की सूचना मिलते ही रख देती। इस कॉल की सूचना नीरज को भी मिल जाती थी पर उसने कभी कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा। धीरे धीरे रजनी ने फोन करना बंद कर दिया। कभी कभी जूही फोन से हालचाल ले लिया करती थी|
आज अचानक फोन करने में नीरज को थोड़ी झिझक हुई फिर भी उसने कॉल लगाया। रजनी ने तुरंत फोन उठाया और खुश होकर बातें करने लगी।
" रजनी, रोहन तुम्हें मिस कर रहा। क्या तुम यहाँ आ सकती हो या हमलोग ही तुम्हारे यहाँ आ जायें?"
"अरे वाह! आ जाओ भइया। बड़ा मजा आएगा।इसी बहाने तुमलोगों की सैर भी हो जाएगी।"
नीरज ने फोन रख दिया।
"इस संक्रमण ने दोस्त को दोस्तों से दूर कर दिया , पर रिश्ते नजदीक आ गए," जूही ने मुस्कुराकर कहा और रोहन को लेकर तैयार होने चल दी।
@ऋता शेखर' मधु'

शनिवार, 26 सितंबर 2020

कर्णेभिः 6-लघुकथा- किराया- डॉ कमल चोपड़ा- वाचन-ऋता शेखर मधु


प्रिय मित्रों...वीडियो पर आपके सुझाव, प्रोत्साहन , समीक्षा एवं आलोचना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| 

सोमवार, 21 सितंबर 2020

हिन्दी पखवारा की रचना -3-ताँका


तांका
1
भोर का रूप
निखरी हुई धूप
माँ सी छुअन
चिड़ियों की चहक
गुलाबों की महक।
2
दीये की जिद
आँधियों से सामना
मद्धिम ज्योति
प्रकाश की कामना
लौ को सहेज रही
3
हरसिंगार
समर्पण की चाह
झरी पँखुरी
भर कर अँजुरी
शिव पूजन चली।
4
चली लेखनी
तलवार से तेज
शब्दों की धार
मोहक अनुस्वार
अनुनासिक चाँद|

कृष्ण बिछोह
प्रेम की परिभाषा
मौन राधिका
युग युग बदले
प्रीत नहीं बदली|
--ऋता शेखर 'म
धु'

हिन्दी पखवारा की रचना-२ हाइकु


बहुत दिनों बाद हाइकु
1


पचपन में
बचपन की लोरी
पोते- पोतियाँ।






2


लम्बी हैं राहें
दामन में सुमन
पग में छाले।






3


तरुणावस्था
सपनीले नयन
नभ का चाँद।





4


जेठ की धूप
सुर्ख गुलमोहर
नव उल्लास।





5


आयी बारिश
नभ और नयन
अंतर कहाँ।






6


हरी पत्तियाँ
गुलाबों की महक
घर अँगना।




7


विशाल वट
मूल मूल है कहाँ
जाँच एजेंसी।






8



उगी रोशनी
छुप रहा अँधेरा
हर्ष का गीत|



--ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 19 सितंबर 2020

छन्न पकैया

छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया, बिटिया घर का गहना।
लगती है गुड़िया सी प्यारी, भाई का है कहना।।१

छन्न पकैया छन्न पकैया, खूब खिले गुलमोहर।
कान्हा जी के आ जाने से, गूँज उठा है सोहर।।२

छन्न पकैया छन्न पकैया, कोई नहीं भतीजा।
बुरे काम का सदा रहेगा,जग में बुरा नतीजा।।३

छन्न पकैया छन्न पकैया, जागी जनता सारी |
चंचल जिद्दी कोरोना पर, मास्क पड़ा है भारी ।।4

छन्न पकैया छन्न पकैया , सूई में है धागा |
देख पुलिस का मोटा डंडा, चोर निकल के भागा || ५

छन्न पकैया छन्न पकैया, देखी सारी दुनिया |
सब पर भारी पड़ती है, पढ़ती लिखती मुनिया ||६

छन्न पकैया छन्न पकैया, सच हरदम है जीता |
उसके घट मे भरा है अमृत, घड़ा झूठ का रीता ||७

छन्न पकैया छन्न पकैया, हाथी हो या पेंग्विन |
बोलो कैसे बच पाओगे, किया कभी हो जब 'सिन'||८

छन्न पकैया छन्न पकैया, कौन बजाए बाजा |
चूहों की नगरी इटली में, नीरो फिर से आजा|| ९

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुन लो नई कहानी|
आई कंगना के वेश में, फिर झाँसी की रानी ||१०

छन्न पकैया छन्न पकैया, प्यारी लगती पोती|
दादी बचपन जी लेती जब, वह गोदी में सोती ||११
--ऋता शेखर

हिन्दी पखवारा की रचना -1-दो का महत्व

हिन्दी पखवारा की रचना -1










दो का महत्व
-------------------
दोनों तट गर मिल जायें
नदिया बहेगी कैसे
अगर नहीं हों सुख दुःख
जीवन चलेगा कैसे
ओर छोर के बीच में
धागे का अस्तित्व है
पति पत्नी के मध्य मनु
अटका स्वामित्व है
दिन रात जो चलें न साथ
तिथि नहीं बदलेगी
तर्क वितर्क के बिना कहाँ
नवकली करवट लेगी
होते हैं धरती आकाश
सजीव तभी पलते हैं
पतझर को देख देख
बसन्त बाग में चलते हैं
दिल दिमाग जब साथ हों
भाव झर झर फूटें
रूठ जाए जो एक कभी
घर जाने कितने टूटें
जन्म मृत्यु का तथ्य पहचानें
दो का महत्व तभी हम जानें
-----
हिन्दी अंग्रेजी के बीच में
क्यों अंग्रेजी का वर्चस्व सहें
हिन्दी के अपने सारतत्व हैं
मिलकर हम सब महत्व गहें
हिन्दी बोलें अभिमान से
कलम चलाएँ बड़े शान से
भाषा को मर्यादित रख
खूब रचें अरमान से।
---ऋता
हमारी भाषा हमारा अभिमान
सभी हिन्दी प्रेमियों को हिन्दी पखवारा की हार्दिक शुभकामनाएं!!

रविवार, 23 अगस्त 2020

ड्रैगन को देना है मात

मानचित्र पर बिछी बिसात,
ड्रैगन को देना है मात।
सीमा से है उठी पुकार,
देना अपना सब कुछ वार।

भू भारत का लेगा छीन,
ऐसी सोच न पाले चीन।
बढ़ते पग देंगे हम रोक,
सीमा पर ही देंगे ठोक।

रखकर के नीयत में खोट,
जो भी पहुँचायेगा चोट।
शूरवीर कर देंगे वार,
फिर तो होगी उसकी हार।

हुई मित्रता में जब गैप,
हटा दिए हैं चीनी ऐप।
तोड़ दिए सारे सामान,
देंगे नहीं तुम्हें सम्मान।

अपना भारत बड़ा महान,
दुनिया में है इसकी शान।
प्यार निभाने की है रीत,
मिलन भाव के रचता गीत।

@ऋता शेखे मधु

बाढ़


Weather Update: 30 killed due to lightning in Bihar heavy rain ...
बाढ़ से भयावह स्थिति: प्रभावित ...
एक सुनहरी रेखा खींच
चपल दामिनी नभ के बीच
नभ-वसुधा से रिश्ता जोड़
सघन कालिमा देती तोड़|
ले आती बारिश की धार
जिसमें हुलसे घर संसार।
समझ न पाती वह यह बात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।


नदियाँ रूप धरें विकराल
हहराती सी उनकी चाल।
सुरसा सम होतीं बेताब
लहरें लिखतीं नई क़िताब।
जाने क्या क्या लेतीं लील
बुझते खुशियों के कंदील।

कृषक स्वप्न को देकर मात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
तीव्र वेग से देकर जोर
आकर नीर मचाते शोर।
तटबन्धें होतीं लाचार
खिसक गिरें उनकी दीवार।

सर सर बढ़ते जाते पाँव
पानी में डूबे हैं गाँव।
सर्प निकल करते आघात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
बह जाते हैं फसल मकान
मिट जाते कितने अरमान।

ले नेता को उड़े विमान
जनता देख हुई हैरान।
राहत के थोड़े सामान
चैनल पर करते गुणगान।
बेघर होकर मिले न भात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।

@ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 22 अगस्त 2020

आज बधइयाँ बजाओ सखी

Janmashtami 2020: Puja Vidhi Puja Timing Subh Muhurat and Vrat Vidhi

आज बधइयाँ बजाओ सखी,
कान्हा जी घर आये हैं।।
हर्षित हैं वसुदेव देवकी,
मधुसूदन मुस्काये हैं।।

मुदित हुईं यमुना पग छू कर,
गोकुल जाते गोपाला।।
वहाँ मिलेंगी मात यशोदा
प्रभु बनेंगे नन्दलाला।।

तोरण द्वारे लगाओ सखी,
कान्हा जी घर आये हैं।।
दूध बिलोतीं मात जसोदा,
मटकी में दधि भरती हैं||

लगा रहीं काजल का टीका,
बुरी बलाएँ हरती हैं||
फूल बैजंती लाओ सखी,
कान्हा जी घर आए हैं||

पलने में मखमल डलवा दो,
श्याम वहाँ पर झूलेंगे||
नंद सुनेंगे जब किलकारी,
हृदय कुसुम बन फूलेंगे||

मोर का पंख सजाओ सखी,
कान्हा जी घर आये हैं||
नाच रहे हैं गोप- गोपियाँ,
आए दाऊ के भाई||

गोकुल की गलियों में गूँजी
मधुर- मधुर सी शहनाई||
चाँद की लोरी गाओ सखी,
कान्हा जी घर आये हैं||

-ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 15 अगस्त 2020

#Independence Day 20 #National Anthem #स्वतंत्रता दिवस #जन गण मन


आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई|
झंडा ऊँचा रहे हमारा...विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

बुधवार, 15 जुलाई 2020

शिव करते उपकार सभी पर - गीत


शंकर जी की नगरी आकर, बम लहरी से दिल डोला है | 
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है || 

निकल जटा से शिव की गंगा, 
करने आतीं सबको पावन | 
हर हर गंगे के नारों से , 
गूँज उठा है फिर से सावन || 

जटाजूटधारी के तन पर, व्याघ्र चर्म का इक चोला है| 
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है|| 

इस दुनिया की रीत यही है 
सबको ही विष पीना होगा || 
फैल न पाए वह जीवन में 
नीलकंठ बन जीना होगा || 

डम डम बज कर डमरू भी अब, ओम नमः नमः शिव बोला है | 
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है ||

ढेर लगी है विल्वपत्र की , 
राम नाम का शुभ वंदन है || 
भाँग धतूरा भोग बने हैं , 
चढ़ता शिव माथे चंदन है || 

वृषभ सर्प जहँ संग रहें वह, औघड़दानी का टोला है | 
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है|| 

छाए हैं संकट के बादल 
शिव जी अपनी कृपा बढ़ाओ| 
मति मानव की मूढ़ बनी है, 
वहाँ ज्ञान की परत चढ़ाओ || 

भस्म विभूषित होकर बैठे, एक नयन रखता शोला है| 
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है|| 

@ऋता शेखर ‘मधु’

https://youtu.be/xGCH9LsFCn8

रविवार, 21 जून 2020

एकमेव सूर्य...पितृ दिवस...योग दिवस...सूर्य ग्रहण...रविवार


sunday special lord surya puja tips for prosperity
वह सिर्फ एक ही हैं जिनमें सभी दिवस समाहित हो रहे...
सभी दिवसों के लिए एकमेव शुभकामनाएँ 💐💐💐💐💐

आज पितृदिवस है....सूर्य से बड़ा पिता कौन
आज योग दिवस है.... सूर्य नमस्कार से बड़ा योग कौन
आज सूर्यग्रहण है...इसे बड़ी खगोलीय घटना कौन
आज रविवार है...सूर्य भगवान का दिन


पिता के समान ऊर्जादायक सूर्य को बारम्बार नमस्कार है 🙏🙏🙏🙏

सूर्य नमस्कार योग बारह आसनों में पूर्ण होता है|
सभी आसनों के लिए अलग अलग मंत्र हैं, जिसे संकलित किया है|

१.प्रणाम आसन
उच्चारण : ॐ मित्राय नमः
अर्थ: सबके साथ मैत्रीभाव बनाए रखता है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

२.हस्तउत्थान आसन।
उच्चारण: ॐ रवये नमः।
अर्थ: जो प्रकाशमान और सदा उज्जवलित है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

३.हस्तपाद आसन
उच्चारण: ॐ सूर्याय नम:।
अर्थ: अंधकार को मिटाने वाला व जो जीवन को गतिशील बनाता है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

४. अश्व संचालन आसन
उच्चारण: ॐ भानवे नमः।
अर्थ: जो सदैव प्रकाशमान है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

५.दंडासन
उच्चारण: ॐ खगाय नमः।
अर्थ: वह जो सर्वव्यापी है और आकाश में घूमता रहता है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

६.अष्टांग नमस्कार
उच्चारण: ॐ पूष्णे नमः।
अर्थ: वह जो पोषण करता है और जीवन में पूर्ति लाता है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
७.भुजंग आसन
उच्चारण: ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
अर्थ: जिसका स्वर्ण के भांति प्रतिभा / रंग है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
८.पर्वत आसन
उच्चारण: ॐ मरीचये नमः।
अर्थ: वह जो अनेक किरणों द्वारा प्रकाश देता है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
९.अश्वसंचालन आसन
उच्चारण: ॐ आदित्याय नम:।
अर्थ: अदिति (जो पूरे ब्रम्हांड की माता है) का पुत्र है|
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
१०.हस्तपाद आसन
उच्चारण: ॐ सवित्रे नमः।
अर्थ: जो इस धरती पर जीवन के लिए ज़िम्मेदार है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
११.हस्तउत्थान आसन
उच्चारण: ॐ अर्काय नमः।
अर्थ: जो प्रशंसा व महिमा के योग्य है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)
१२.ताड़ासन
उच्चारण: ॐ भास्कराय नमः।
अर्थ: जो ज्ञान व ब्रह्माण्ड के प्रकाश को प्रदान करने वाला है।
(संकलन-ऋता शेखर मधु)

शनिवार, 20 जून 2020

आत्महत्या लाँग ड्राइव नहीं कि सोचा और निकल लिये


सर्दियों में बढ़ जाता है अवसाद का ...
आत्महत्या...क्या स्वयं को खत्म कर लेने वाला ही जिम्मेवार या कोई और भी है जिम्मेवार?

आत्महत्या को कायरता कहकर आत्महत्या के कारणों को नज़रअंदाज कर देना बड़ी भूल है| 
एक होती है शरीर की हत्या जिसके लिए मारने वाले को अपराधी घोषित किया जाता है| उससे भी भयंकर होती है किसी के मन की हत्या कर देना| शरीर की हत्या के लिए उपयोग में लाए गये हथियार दिखते हैं किंतु  आत्महत्या के लिये मजबूर करने वाले अपराधियों के शब्द- बाण किसी को नहीं दिखते| उनका आहत करने वाला व्यवहार परदे की ओट में चला जाता है|
जन्म लेने वाले हर इंसान के लिए ज़िन्दगी खूबसूरत होती है| वह भी खिलखिलाना चाहता है, बादलों को देखकर नाचना चाहता है| कोई शारीरिक रूप से अक्षम होता है फिर भी वह खुश रहता है| फिर ऐसा क्या हो जाता है कि मनुष्य  स्वयं की हत्या कर देता है| कभी- कभी कहना बहुत आसान होता है कि परिस्थिति का डटकर मुकाबला करना चाहिए,किसी को क्या पता कि वह इंसान मुकाबला कर रहा  होता है फिर भी वह हार जाता है| 
कहा जाता है कि ईश्वर एक रास्ता बंद करते हैं तो दस रास्ते खोल देते हैं| यह सही भी है | फिर भी उस स्थिति की कल्पना  की जा सकती है कि खुद को खत्म करने से पहले वह इंसान खुद कितनी मानसिक प्रताड़ना से गुजरा होगा| मैं तो मानसिक विक्षिप्तता को भी हत्या की श्रेणी में ही रखती हूँ| वह साँस ले रहा है इसका अर्थ यह नहीं कि वह जिन्दा है| वैसे रोगियों का भी पास्ट टटोलकर देखना चाहिए तब पता चलेगा कि उसके मस्तिष्क पर असंख्य विषबुझे बाण चुभे होते हैं जो  उसने  निकालने की कोशिश भी अवश्य की होगी...विक्षिप्त होने से पहले|
प्रताड़ना...स्त्री विमर्ष का हिस्सा भी है| विवाह एक जुआ है| जो जीत गया वो जीत गया...जो न जीत पाया वह तिल तिल कर मरता रहा| साथ ही समाज की प्रताड़ना भी सहता रहा कि निभाने में ही भलाई है| हद से अधिक जाकर निभाने की कोशिश भी की जाती है, फिर भी इसका चरम क्या हो सकता है...आत्महत्या, घर का परित्याग या मानसिक रोग...और ये तीनों स्थितियाँ हत्या ही हैं जिसके लिए जिम्मेवार व्यक्ति की खोज अवश्य की जानी चाहिए| इसके शिकार पुरुष भी हो सकते हैं|
पारिवारिक स्थिति के बाद सामाजिक स्थिति पर विचार करें तों अड़ोस पड़ोस की प्रताड़ना, किसी लड़की को बाहर निकलने से भी खौफ़ देने वाले गुंडों की फौज, स्कूल कॉलेज में होने वाले रैगिंग कई बार आत्महत्या के कारण बन जाते हैं| इन सबके उदाहरण भी हम सभी के आस पास ही मौजूद हैं पर किसी घटना के विस्तार में  जाना इस पोस्ट का मकसद नहीं|
उसके बाद नौकरी में प्रतिद्वंदिता और प्रताड़ना के कारण भी आत्महत्या के मामले आते हैं| आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले बच्चे भी बहुुत दवाब में रहते हैं| कहने को कोरोनाकाल में वर्क फ्रॉम होम हो रहा..किंतु काम बहुत अधिक लिया जा रहा| विदेशी कंपनियाँ स्वयं रात्रि का समय बचाकर रात के ग्यारह बारह बजे भारतीय कर्मचारियों के साथ मीटिंग रखते हैं|
पोस्ट क्यों लिखी जा रही यह तो समझ ही गये होंगे| अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या  जहाँ फिल्मी दुनिया के कई राज सामने ला रहा उससे अधिक अभिभावकों के मन में भय पैदा कर रहा| जिन बच्चों को माता- पिता अपना सर्वस्व देकर जिन्दगी जीने लायक बनाते हैं वह बच्चा किस मानसिक दबाव में जी रहा, शायद कभी कभी जान भी नहीं पाते| ऐसे में सुशांत की मौत पर उनके साथ इस विषय पर बात करने से भी अभिभावक डर रहे| प्रतिस्पर्धा की दुनिया में नौकरी न पाना, पा लिया तो टिक न पाना, टिक गये तो दबाव में जीना...यह सब क्या है, यह विचारणीय है| कब किसके मन पर नकारात्मकता हावी हो जाए यह कहना मुश्किल है| ऐसे में कोई सुनने वाला हो, यह सबसे जरूरी है| सुशांत के मामले में मैं समझ पा रही हूँ कि माँ का न होना भी कारण बन सकता है| माँ रहतीं तो वह अपने दबाव उनसे साझा कर सकते थे| 
ःः मेरी यह पोस्ट आत्महत्या या नकारात्मकता को बढ़ावा नहीं दे रही...किन्तु यह जरूर कहना चाहती हूँ कि इसे सिर्फ कायरता कहकर किसी भी प्रताड़ना की अनदेखी न की जाए |

शुक्रवार, 19 जून 2020

ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है-गीत


Air Definition in Science

खुशबुओं की पालकी से शुभ्रता को पा रही है।
पुष्प का उपहार पाकर तू बहुत इतरा रही है।
ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है।।


चाहते जिसको सभी वह रूप तेरा है बसंती,
झूमती हर इक कली का है बना अनुबंध तुझसे।
डालियाँ घूमीं उधर जाने लगी तू जिस दिशा में,
मंद शीतल जब हुई तू है बना संबंध तुझसे ।


प्रेम से सुरभित बनी तू प्रेम ही दिखला रही है|
पुष्प का उपहार पाकर तू बहुत इतरा रही है।
ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है।।


गर्म दिनकर जब हुए तू क्यों अचानक बौखलाई ,
ताप की आँधी चली तो जंग सी छिड़ने लगी क्यों?
चाल पर से खो नियंत्रण नाचती बनके बवंडर ,
हर दिमागी सोच से फिर भावना भिड़ने लगी क्यों?

रेत पर तू बावरी बन किस पिया को पा रही है|
पुष्प का उपहार पाकर तू बहुत इतरा रही है।
ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है।।

जो धुआँ लेकर चली है नफ़रतों से है भरी वह,
छोड़कर हर कालिमा तू बादलों को ला धरा पर|
तू न होगी तो जगत सुनसान मरघट ही बनेगा,
बुझ चुकी जो लौ दिलों में फूँक कर उनको हरा कर||

शुभ हवन की अग्नियों से साधना महका रही है|
पुष्प का उपहार पाकर तू बहुत इतरा रही है।
ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है।।


पतझरों में ढेर लगती सरसराती पत्तियों की,
कर रही हैं शोर देखो दर्द से भीगी शिराएँ|
मित्र बनकर ऐ पवन बस थाम ले उनके बदन को,
बैठकर कुछ देर सुन ले ठूँठ से उनकी व्यथाएँ||

तू सहेली सी बनी है वेदना सहला रही है|
पुष्प का उपहार पाकर तू बहुत इतरा रही है।
ऐ हवा ये तो बता तू अब किधर को जा रही है।।

@ऋता शेखर 'मधु'

गुरुवार, 18 जून 2020

हे! अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो-गीत


Meri Maa Ambe Meri Jagdambe - Posts | Facebook
(हे! अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।)


हे! अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
आद्या जया दुर्गा स्वरूपा, शक्ति का आधार हो।
*
शिव की प्रिया नारायणी, हे!, ताप हर कात्यायिनी।
तम की घनेरी रैन बीते, मात बन वरदायिनी।।।
भव में भरे हैं आततायी, शूल तुम धारण करो।
हुंकार भर कर चण्डिके तुम, ओम उच्चारण करो।
*
त्रय वेद तेरी तीन आखें, भगवती अवतार हो।
हे! अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
*
कल्याणकारी दिव्य देवी, तुम सुखों का मूल हो।
भुवनेश्वरी आनंद रूपा, पद्म का तुम फूल हो।
भवमोचनी भाव्या भवानी, देवमाता शाम्भवी।
ले लो शरण में मात ब्राह्मी, एककन्या वैष्णवी।।
*
काली क्षमा स्वाहा स्वधा तुम, देव तारणहार हो।
हे अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
*
गिरिराज पुत्री पार्वती जब, रूप नव धर आ रही।
थाली सजे हैं धूप चंदन, शंख ध्वनि नभ छा रही।|
देना हमें आशीष माता, काम सबके आ सकें।
तेरे चरण की वंदना में, हम परम सुख पा सकें।।
*
दे दो कृपा हे माँ जयंती, यह सुखी संसार हो|
हे! अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
*
मौलिक , स्वरचित
ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 16 जून 2020

मन पाखी पिंजर छोड़ चला-गीत

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मन पाखी पिंजर छोड़ चला

मन पाखी पिंजर छोड़ चला।
तन से भी रिश्ता तोड़ चला ।।

जीवन की पटरी टूट गयी ।
माया की गठरी छूट गयी ।
अब रहा न कोई साथी है,
मंजिल पर मटकी फूट गयी।।

निष्ठुरता से मुँह मोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।

जीवन घट डूबा उतराया ।
माँझी कोई पार न पाया ।
शक्ति थी पँखों में जबतक,
भर उड़ान सबको भरमाया ।।

ईश्वर से नाता जोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।

लक्ष्य सदा ही पाना होगा ।
जाना है तो जाना होगा ।
कितने जन्मों का फेरा है,
पूछ लौटकर आना होगा ।।

दर्पण को दंभी फोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।

ऋता शेखर 'मधु'

सोमवार, 15 जून 2020

दुनिया तो रैन बसेरा है-गीत


9 Key Insights from Adam Grant's 'Give And Take' | Heleo
क्या तेरा है क्या मेरा है
दुनिया तो रैन बसेरा है

क्या तेरा है क्या मेरा है|
यह घर कुछ दिन का डेरा है|
साथ चलेंगे कर्म हमारे,
यह पाप-पुण्य का फेरा है||

मानवता का साथी बनकर,
मिल जाता नया सवेरा है |
दुनिया तो रैन बसेरा है ||१

दुनिया में हर दीन-दुखी को,
गले लगाकर के चलना है|
बिन आँचल के मासूमों को
दूजे की गोदी पलना है ||

बुरी बला से बचे रहेंगे
आशीषों का जब घेरा है
दुनिया तो रैन बसेरा है ||२

पूजा में नत होकर देखो |
कर्मों में रत होकर देखो |
दुआ मिलेगी दुखियारों से,
उनके घर छत होकर देखो ||

अपने सारे जाल समेटो
आया संझा का बेरा है
दुनिया तो रैन बसेरा है ||३

मौलिक, स्वरचित
ऋता शेखर ‘मधु’