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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

आकलन-लघुकथा

आकलन
स्कूल जाने के लिए रेवा बस स्टॉप पर पहुँच चुकी थी| वहाँ पहुँच कर पता चला कि उस दिन बस हड़ताल थी| अब क्या करे रेवा| तभी अत्याधुनिक कपड़ों मे स्कूटी चलाकर जाती हुई एक महिला दिखी| उसने लिफ्ट के लिए हाथ दिया| स्कूटी वहाँ पर रुकी|
''क्या आप मुझे जीरो माइल तक लिफ्ट देंगी| मैं वहाँ से पैदल ही स्कूल चली जाऊँगी| आज स्कूल में एक महत्वपूर्ण आयोजन है और जाना जरूरी है| ''
वह रेवा के ढीले ढाले सलवार समीज को देखकर उसके स्तर का अंदाज लगा रही थी| फिर ''समय नहीं'' कहती हुई फर्राटे से निकल गई|
अभी रेवा ने दूसरी सवारी की ओर देखना शुरु ही किया था कि धम से आवाज सुनाई दी | रेवा ने पलट कर देखा|
''अरे , यह तो वही है'' सोचती हुई वह उस तरफ बढ़ी| सड़क पर बड़ा सा पत्थर था और स्कूटी शायद उसी से टकरा गई थी| उसे सिर पर जोर से चोट लगी थी इसलिए थोड़ी बेहोशी थी शायद| रेवा ने अपने बैग से पानी का बॉटल निकाला और उसे पिलाया| चेहरे पर पानी के छींटे भी दिए| धीरे धीरे उसने आँखें खोली|
''चलिए, आपको घर छोड़ दूँ,''रेवा ने उसे सहारा देते हुए उठाया|
''मैं चली जाऊँगी''
''नहीं, आप स्कूटी पर बैठें , मैं चलाकर ले जाऊँगी' 'रेवा ने सख्ती से कहा|
वह पीछे बैठ गई|
''मेरी स्कूटी खराब थी इसलिए...'' उसकी प्रश्न भरी नजरों को समझ कर रेवा ने मुसकुरा कर स्वयं ही कह दिया|
-ऋता शेखर 'मधु'

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’रसीदी टिकट सी ज़िन्दगी और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. बाह्य रूप व पहनावे से किसी को आँकना कितना गलत हो सकता है, इसका सुंदर उदाहरण पेश करती कहानी।

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  4. आकलन कपड़ों से !
    सुधा मूर्ति जी भी ऐसी परिस्थिति झेल चुकी हैं !!

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  5. सुन्दर!
    प्रेरक और विचारणीय लघुकथा।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  6. बहुत ही बढ़िया लघुकथा,सीख देती हुई

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