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शनिवार, 2 सितंबर 2017

सोच के बादल-लघुकथा

सोच के बादल

आज गणेश चतुर्थी के कारण ड्राइवर और मेड छुट्टी पर थे| अमृता और सरस पूजा की तैयारी में व्यस्त थे|
अचानक सरस को इमर्जेंसी कॉल आ गया | कोई ऊँची इमारत से गिर गया था और तुरंत इलाज की जरूरत थी|
''यार अमृता, जल्दी निकलना पड़ेगा| मैं शावर के लिए जा रहा हूँ| मेरी एक ड्रेस निकालकर प्रेस कर देना|''
''ठीक है'', अमृता ने कहा किन्तु वह भूल गई|
बाथरूम से निकलने पर सरस को कपड़े नहीं मिले तो वह चिल्ला पड़ा| हड़बड़ाई सी अमृता ने आकर कपड़े निकालने चाहे तो सरस ने उसका हाथ झटकते हुए कहा,''रहने दो, मैं कर लूँगा|''
सरस का ऐसा रूप अमृता ने पहले नहीं देखा था| रुआँसी होकर वह किचेन में गई और चाय बिस्किट ले आई|
''रहने दो, ऐसे ही जाऊँगा| जो कहा वह तो किया नहीं अब ये क्या है'', कहता हुआ दरवाजा खोल वह बाहर निकल गया|
आज कोर्ट में अमृता के वो क्लाइंट आने वाले थे जिन्होंने दो महीने पहले तलाक की अर्जी दी थी और अमृता ने उन्हें समझाते हुए दो महीने और साथ रहने को कहा था| उसका मन यह जानने को उत्सुक था कि दोनों ने क्या सोचा है|
किन्तु अब उसका मन कोर्ट जाने का नहीं हो रहा था| उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया| अपने जरूरत का सामान रखकर अमृता ने सूटकेस की जिप लगाई और दरवाजे से सटी दीवार के पास रख दिया| किचेन में जाकर चाय बनाई और कप लेकर बालकनी में खड़ी हो गई| आज आसमान मेघाच्छादित था| बादलों ने सूर्य को पूरी तरह से ढक रखा था| क्षण भर को उनकी गिरफ़्त से सूर्य निकल आता किंतु बादलों के झुँड उसे पुनः दबोच लेते| अमृता के दिमाग में विचारों की आवाजाही तेजी से चल रही थी|
''कोई इतनी बुरी तरह किसी को कैसे डाँट सकता है| मुझे भी तो कोर्ट जाने की जल्दी थी| जल्दी पूजा करके निकलना था|''
उसे सहेलियों का मजाक में यह कहना याद आ रहा था,''अमृता वकालत पढ़ेगी और जब उसका पति उसे डाँटेगा तो न जाने उसपर कौन सी धारा ठोक देगी...च्च्च बेचारा पति'' फिर खिलखिला पड़तीं सब के सब|
''और नहीं तो क्या, हम नारियाँ होने वाले अत्याचार के लिए खुद दोषी हैं,''वह भी कहाँ चुप रहती थी|
चाय पीते पीते वह वह ड्राइंग रूम के उस कोने में जा पहुँची जहाँ सरस की दादी माँ की तस्वीर लगी थी| ध्यान से वह तस्वीर देखने लगी| चंदन की माला के पीछे से दादी की स्नेहिल मुस्कान छलक रही थी| उसे लगा कि वह आज फिर से कह रही हैं'' बेटा , सरस में तुमने अभी प्रेमी का रूप देखा है| जब उसके गुस्से को झेल लोगी तब सही मायने में उसकी प्रेमिका बनोगी| मैं जानती हूँ कि तुम झेल लोगी''
ओह, दादी जानती थीं कि उनका पोता बहुत गुस्सैल है| किन्तु उन्होंने मुझमें भी तो विश्वास दिखाया था|
''उफ्फ, क्या करूँ'' अपने ही विचारों से आँखमिचौनी खेलती हुई अमृता बेचैनी से टहल रही थी| तभी फोन की घंटी बज उठी|
''मैम, हम दोनो को तलाक की अर्जी वापस लेनी है, आप जल्दी आइए''
''पर यह चमत्कार कैसे''
''आपके कहे अनुसार इन दो महीनों में हमने सिर्फ एक दूसरे की अच्छाइयों पर ही बातें कीं|
''अरे वाह! आती हूँ'', कहकर सूटकेस वापस कमरे में ले आई| सारे सामान जगह पर रखे |
तब तक आसमान में सूर्य भी बादलों की पकड़ से छूटकर पूर्ण प्रकाश के साथ चमक रहा था|
-ऋता शेखर 'मधु'
31/08/17

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-09-2017) को "आदमी की औकात" (चर्चा अंक 2717) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत अच्छी रचना जीवन के यथार्थ के दर्शन कराती रचना ।

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  4. रिश्तों में मजबूती अच्छाईयां तलाशने से आती है ! बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब ।

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