पृष्ठ

मंगलवार, 6 मार्च 2018

वक्त का बदलाव

वक्त का बदलाव
"जहाँ देखो सिर्फ बेटियों के लिए ही स्लोगन बन रहे।
मेरी बेटी मेरा अभिमान।
बेटी पढ़ाओ बेटी बढाओ।
बेटियों से संसार है....हुंह"
ननद रानी की बातें सुनकर सुहासिनी मुस्कुरा रही थी।
"तो इसमें दिक्कत क्या है जीजी। बेटियों को तो बढ़ावा मिलना ही चाहिए।"
"पर इस तरह के नारे बनाने की क्या जरूरत है। क्या बेटे वाले अपने बेटों पर अभिमान नहीं करते।" अब सुहासिनी दो बेटों वाली नन्दरानी का दर्द समझ रही थी।
"और बेटा या बेटी पैदा करना अपने हाथ में है क्या" जीजी अब भी बोले जा रही थीं।
"यही बात सदियों से कही जा रही। पर कहने वाले बदल गए। है न जीजी" सुहासिनी को वो दिन याद आ गया जब दूसरी बिटिया के जन्म पर बुरा सा मुँह बनाकर जीजी ने कहा था,"फिर से बेटी" ।
जीजी को भी शायद वही बात याद आयी थी इसलिए नजरें बचते हुए वहाँ से दूसरे कमरे में चली गईं।
-ऋता शेखर "मधु"

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 8 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 965 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.03.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2903 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!